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________________ (६०) आनंदितपणुं , विषय कषाय जेने सेववा नथी, एथीमुक्त श्रया डे, कांईक अंश रह्यो ने तेथी मुक्त श्रवाना कामी ने, शांत रसनाज नद्यमी , शत्रु अने मित्र तुल्य , एवा आचार्य, नपाध्याय अने साधुजी महाराज, पर जीवना नपकार करवा पृथ्वी नपर विचरे , ने धर्म उपदेश देईने जगतना जीवने अधर्मथी बोकावे जे. केटलाएक नथी गेमता, पण डोमवाने सन्मुख पाय ने; एवा नपकारना करनारा पुरुषो ठे, तेज गुरु कहेतां मोहटा ने माटे तेमनो विनय करवो. गुरु पासे जq तो सचित पदार्थ लईने जवु नहि, तेमज गुरु दी हाथ जोमी नमस्कार करवा. वली गुरुजीने बे खमासमण एटले पंचांग प्रणाम करीश्चकार सुहरा (सुहदेवसी) सुखतप शरीर निराबाध सुख संजम जात्रा निर्वहो गेजी स्वामी शाता जी नात पाणीनो लान्न देजोजी, पठी कहेवू जे-इलाकारेण संदिसह नगवन् अनुनिहं अप्रिंतर देवसिअं खामेनं एम कही गुरुनी आज्ञा मागी गुरु आज्ञा आपे जे खामेह, पग पंचाग प्रणाम पूर्वक अनुन्निदं अप्रिंतर खामवो एटले कहेवू. प्रतिक्रमणनी चोपमीमां ते मुजब खामवं. इनकार कही साता पूरी अनुन्नि खामवाथी कंइ गुरुनी आशातना थई होय, तेनी माफी मागी हवे जेटला बोल अग्निमां आवे , एटला बोल करवायी गुरुनी प्राशातना थाय ने माटे एटला बोल वर्जवाथी गुरुनो विनय पाय डे, तेथी अनुन्नि खमावी विचार राखवो, जे रखेने एहवी नूल थाय. वली झादशावर्त वंदन गुरुने करवू, ए पण गुरु महाराजनो विनय , ते चंदन पण प्रतिक्रमणनी अर्थवाली चोपमीमां अर्थ सहित , माटे ते अर्थ समजीने ते प्रमाणे वर्तवू. वली अरिहंत नगवंतनो विनय पांच प्रकारे बताव्यो छे तेज रीते करवो; एवीज रीते गुरु पासे जईने वंदन करवू, पठी त्यां गुरु कथा करता होय ने
SR No.023346
Book TitleAdhar Dushan Nivarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnopchand Malukchand Sheth
PublisherAnopchand Malukchand Sheth
Publication Year1903
Total Pages232
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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