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________________ (१२५) हाविदेहक्षेत्रमा सदा तीर्थकर महाराज विचरता लाने, न. गमां नग एक महा विदेहमां चार तीर्थकर महाराज होवा जोईए, एम जंबुदीप पन्ननिमां अधिकार . कोई ग्रंथमां बेपण कहे , एम प्रवचन सारोबारमा कहेलुं .तत्त्व केवलीगम्य.वली नत्कृष्ट कालमा एक महाविदेहमां बत्रीश विजय ,ते सर्वे वि. जयमां एक एक तीर्थकर महाराज होय तेथी एक महाविदेहमां बत्रीश तीर्थकर विचरता लाने; वली केवलज्ञानी सदा काल लाने, मोक्षमार्ग सदाकाल वर्ने; जेम जरत, औरवृतमां मोक्षमार्ग त्रण पारामां वर्ते, ने बीजा आरामां बंध थई जाय , तेम त्यां नश्री. प्रानखा विषे पण नरत भैरवृत्तमां वत्तुं , तेम त्यां नथी. सदा क्रोम पूर्व- पान . शरीरमान पांचसे धनुप्यनुं , आ फेरफार , बीजो परा फेरफार शास्त्रथी जोवो. ३० त्रीश अकर्मनूमि तथा उपन्न अंतर हीपना मनुष्य जुगली ते मनुष्यने वेपार, रोजगार,रांधवं, खेतीकाम, कोई पण जातनां नजार बनाववां, वस्त्र पहेरवां, ए कोई पण करवार्नु नथी; टुंकामां असि, मशी अने कृषि ए त्रण कर्मनूमिना मनुष्यने २ तेम एमने नथी. फक्त कल्पवृक्ष फल आपे तेखावां ३. कल्पवृतथी घर बनी गयां , तेमां रहे . जेनी जेटली म. रजादा ने ते प्रमाणे आहारनी वा थाय ते वखते कल्पवृक्ष एनी मरजी प्रमाणे आपे, आयुष्य शरीर पण मोटांडे, ते दरेक क्षेत्र अपेक्षित ,ते आगल आवशे.तेम वली त्यांथो मरीने देवता थाय, बीजी गतिमां जाय नहि. केमके सरल स्वन्नावी , आ. करा राग शेष नथी. - १० हैमवंत अने अरण्यवृत जुगलीयानां क्षेत्र.श्जंबुद्धीपमां तेमज ४ धातकीखंममां ४ पुष्कलाईमां, ए दश क्षेत्रमा जुगलीयां मनुष्य थाय ने तेमनु शरीरमान
SR No.023346
Book TitleAdhar Dushan Nivarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnopchand Malukchand Sheth
PublisherAnopchand Malukchand Sheth
Publication Year1903
Total Pages232
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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