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________________ (४४ ) पूर्वे जेमणे तपनुं अंतराय कर्म बांध्युं वे तेमनुं शरीर नरम परे बे, ने धर्म साधन थई शकतुं नथी, तो तेन शक्ति माफक तपनो उद्यम करशे. वली शरीर नरम हो तो सर्वथा आहार बोमी नहि दे, पण विषय बोमवा तेमां कांई शरीरना बलनी जरुर नथी, तेथी शरीरे जेम टकाव रही शके तेटलो आहार लेशे; पण वत्रीशे रसोईना स्वाद लेवाना जाव न राखे, मात्र जे वस्तु निरवद्य एटले पाप रहित मली तेज चीजयी निर्वाह क रे. एक चीजथी शरीर नने वे तो वधारे वस्तु शुं करवा ले, एवा वीचारथी प्रहार करे बे, तो पण तेने श्राहारनी इन्वा नथी. तपस्वी ने तप करे ने तपने दीवसे तथा बीजे दीवसे खावानी ज्ञावनान करे, तो एने ज्ञानीए तप गएयो नथी, कारण जे इच्छाना रोधने ज्ञानी तप कडे बे, माटे हरेक प्रकारे इन्वा रोकाय एम करवु, वा रोज तप करूं, तपनो अभ्यास करुं तो ते अयासी मारी इच्छा रोकाशे, एवा विचारथी तप करे तो ते पण कोई दीवस वा रोको, माटे इच्छा रोकवानो उद्यम करवो ते सारो बे. जे जे रीते श्रात्मानो गुण प्रगट याय एवो नधम करवो. जेम बने तेम इंडियाना विषयनी वांबा घटवी जोइए तोज साचं ज्ञान कहेवाय; केम के जे श्रात्मानुं स्वरूप जाणे ah, engage आत्मानो धर्म बे. तो जे जे खावानुं मख्यं ते फक्त जाली लेबुं वे तेमां विषय बुद्धि करवी नथी ए - त्मानुं काम बे, तेवा विचारथी ते आहार करे वे तो पण तपस्वीज बे, केमके आत्मजाव कायम रह्यो तप कांई श्राहारना त्यागमां नथी. इज्ञाना रोधमां वे इन्वा रोधनां साधनाने पण तप को थी बार द ह्या बे, माटे जे नेदनो तप करवाथी पोतानी स्वदशा प्रगट थाय ते तप करवो. बारे प्रकारनुं तप उपयोग सहीत करे तो ज्ञानी माहाराजे निर्जरानुं कारण
SR No.023346
Book TitleAdhar Dushan Nivarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnopchand Malukchand Sheth
PublisherAnopchand Malukchand Sheth
Publication Year1903
Total Pages232
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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