Book Title: Yashstilak Champoo Uttara Khand
Author(s): Somdevsuri, Sundarlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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महाराज और पितामही चन्द्रमति और माता-पिता के विषय में पूंछा आना कि अब वे किस लोक में है ? मुनिराज द्वारा कहा जाना--राजन् ! तुम्हारे दादा यशोघमहाराज तो ब्रह्मोत्तर स्वर्ग में देव हैं। तुम्हारी माता पांच नरक में है और तुम्हारी पितामही तथा पिता आटे के बने मुर्गे की बलि देने के गाप से अनेक जन्मों में कष्ट उठाकर अब तुम्हारे गृह में पुत्र-पुत्री के रूप में वर्तमान हैं । यह मुनकर यशोमति कुमार द्वारा अपने दुष्कृत्यों पर वेद-लित होकर बाचार्य में दीक्षा बेने की प्रार्थना की जाना एवं समस्त परिवार को बुलवाकर निगल तारा का दमा नमान
इसके पश्चात् मुनिकुमार द्वारा राजा मारिदत्त से कहा जाना 'राजन् ? हम वही अभयरुचि और अमपमति हैं, अपने पूर्व भवों का वृत्तान्त मुनकर हमें अपने पूर्वजमका स्मरण होगया जिससे हमने संसार को छोड़ देने का निश्चय किया । उस समय हम दोनों की अवस्था केवल ८ वर्ष की थी, इसलिए हमें भुल्वक के व्रत दिये गए । आचार्य सुदत्त के साथ विहार करते हुए आपकी नगरी में आए तो तुम्हारे रोवक हमें पकड़ कर तुम्हारे पास ले आए ॥ १७५
मुनिकुमार को कथा मुनकर मारिदत्त राजा को अपने ऊपर बड़ी ग्लानि हुई, उम की जीवन-धारा धर्म की और प्रवाहित होने लगी । पुन. उसने मुनिफुमार से अपने समान बना लेने की प्रार्थना को। मुनिकुमार में उन्हें अपने गुरु मुक्ताचार्य के पास प्रस्थान करने को कहा १ला कल्य
इति पञ्चम प्रावासः श्री० सुदत्ताशयं का चण्डमारी देवी के मन्दिर में पहुंचना, उससे मारिदत्त राजा को समा का क्षुब्ध हो-7 और मारिदात राजा द्वारा आघायं की पूजा की जाने पर अभयन्त्रि शुल्लक द्वारा प्रस्तुत राजा का परिचय देने के लिए आचार्य से यह कहा जाना कि-'भगवन् यदुवंश में 'चाइमहागे।' नाम का राजा या, प्रसङ्गवश यदुवंश का व उत गजा का लग्नित निरूपण किया जाना और यह कहा जाना कि ये मारिदा महाराज ऊ राजा के मुगुष हैं और हमारी माता कुसुमावलि रानी के लघु भ्राता है, अर्थात्-हमारे छोटे मामा है, अब ऐ उपदेश सुनने के पात्र हैं; ः इन्हें धर्मोपदेश दीजिए । पश्चात् मारिदल राजा द्वारा आचार्य के लिए नमस्कार किया जाना और निराकुल मनोवृत्ति बाले व बुधि गुणों से मुक्त होकर पूज्म सुदत्ताचार्य से निम्न प्रकार प्रश्न किये जाना 'भगवन् ! निस्सन्देह यह प्राणी धर्म से मुखो होता है, उस घमं का क्या स्वरूप है ? और उसके कितने भेद हैं ? एवं उसकी प्राप्ति का क्या उपाय है ? और उसका क्या फल है? १७९ इसके बाद प्राचार्य द्वारा धर्म, उसका स्वरूप व उसके भेद निरूपण किये जाना
१८२ पश्चान् राजा द्वारा मोक्षमागं व संसारकारण गृहस्थ-धर्म व मुनिधर्म के विषय में पूछा आना तत्पश्चात-- आषार्य द्वारा मोक्षमार्ग ३ संसार के कारणों का निरूपण किया जाना
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