Book Title: Yashstilak Champoo Uttara Khand
Author(s): Somdevsuri, Sundarlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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व शारड-ममूह रो सहित उक्त यनारा-गमूह के मध्य में से वापिस लीटा जाना, इसी मवसर पर उसके द्वारा लोह की नोक के तीर से मेरी माता बकरी का विदीर्ण पिया जाना और उसका पेट फाड़ दिया जाना जिससे उनके द्वारा कम्मायमान शरीर वाला एवं अंगार-पूज्ज के ऊपर धारण किया हमा मांग-मरीखा । यसोधर का जीव गर्म-स्थित बकरा ) या जागा और रसोइए के लिए प्रतिपासन निमित्त दिया जाना।
१२४ इसी प्रस्तान में उस चन्द्रमति के जीव बकरी का मरकर कलिङ्ग देशों में भैसा होना, सार एक व्यापारी द्वारा खरीदा जाकर उसका उज्जयिनी में आना और सिपानदी में प्रविष्ट होगा, पुन: यशोमति महागाष के अश्व पर उसके द्वारा सांघातिक प्रहार किया जाकर मारा जाना, जिसके फलस्वरूप राणा के प्रादेण में सेवकों द्वागा घार यन्त्रणा देनार उस मैसे को मार दिपा जाना, यही माग-लम्पट अमृल-मति द्वारा बकरे को पकवाकर भक्षण किया जाना । इस तह गैसा और बकरे का प्राणान्त होना, पगले जन्म में दोनों मुर्गा-मुर्गी हए
'मन्मथमपन' नाम की चरम देहधारी एक मुनिराज द्वारा जम्बूद्वीप के विजयाई पर्वन पर ध्यानस्थ होना, इसी प्रम में यिजयाई पर्वत की छटा का गरस वर्णन किया जाना, 'य-न्दनविलास' नाम के एक विद्याधर का प्राकाशमार्ग से उपर से निकलना, मुनिराज के तप के माहात्म्य से उसके विमान का रुक जाना, जिससे कुपित होकर उसके द्वारा मुनि के ऊपर चोर उपसर्ग किया जाना, विद्याधरों के राजा राशिजण्डी का प्रस्तुत मुनिराज के दर्शनार्थ वहाँ आना और 'कन्दलपिलास' विद्याधर के दुष्कर्म को देखकर उस पर कुपित होना पौर उसे शाप देना कि इस दुष्कर्म के विपाक से न उम्जयिनी में चण्डकर्मा नाम का कोट्टपाल होगा
___ विद्याधर दास परों पर गिरकर प्रार्थना की जाने पर रत्नशिखण्डी द्वारा कहा जाना--'जब तुझे आचार्य सुदत्त के दर्शनों का नाम होगा और तू उनसे धर्मग्रहण करेगा तो सेरो इस शाप से मुक्ति हो जाएगी' इसी प्रमा में प्राचार्य सुदन का, जो कि कलिङ्ग देश के पाक्तिशाली राजा थे, विस्तृत व अलंकार-युक्त वर्णत Frया जाना १३३
रलशिखण्डी द्वारा विद्याधर में यह कहा जाना कि एक दिल दरबार में मदन राजा के ममक्ष एक चोर उपस्थिति किया मया, जो कि सोते हुए नाई को मार डालने और उसका मर्वस्वहरण करने का अपगधी था, गजा द्वारा उसे दण्ड देने के विषय में धर्माधिकारियों की और दृष्टिपात किया जाना, पर्याधिकारियों द्वारा उसके ऐसे चित्र वध करने जा भादेश देना, जिससे दस या बारह दिनों में प्राणत्याग कर देने, यह सुन कर राजा वा त्रिय जोवन से विशेष प्रचि होना, जिससे उसके द्वारा राज्य त्याग कर अपने छोटे भाई को राज्यलक्ष्मी समर्पण करके जिन दीक्षा पारण की जाना
इसी प्रसार में रलशिखण्टी द्वारा 'कन्दविलास' नामक विद्याधर के प्रति उज्जयिनी नगरी में वर्तमान 'सहस्रक्ट' नाम की बसति (जिन मन्दिर) का, जो कि विवानिखिन पांडण स्वप्नांचाली है, इलेषप्रधान अलङ्कारों द्वारा सरस वर्णन किया जाना एवं परिसंध्यालंकार द्वारा उज्जयिनी का ललित निरूपण किया जाना १४२
पुनः उस विद्याधरों के चयती ग्नशिखण्डी द्वाग उक्त निरूपण करके भोर मन्मथमथन ऋषि की पूजा करके इच्छिन स्थान को प्रस्थान किया जाना और उसके पाप-वश कन्दविलास विद्याधर का उज्जयिनी में आकर चकर्मा नामक कौद्रपाल होना
पुनः यशोघर के जीक (बकरे.) का और चन्द्रमति के जीव (मैसे) का उसी तज्जयिनी के समीप एक लाण्डालवस्ती में साथ-साथ मुर्गा-मुर्गी होना बाल्यावस्था व्यतीत हो जाने के बाद किसी अवसर पर 'चन्द्र वर्मा नाम के कोट्टपाल द्वारा दोनों मुर्गा-मुर्गी का एक चाण्डाल पुत्र के हस्तगत देखा जाना, पश्चात् उससे लेकर पशोमति महाराज के लिए दिस्परलाये जाना, पुन: उनके द्वारा यह कहा जाना कि 'ह चपटक ! यह मुर्गा का पाड़ा तब तक तुम्हारे ही