Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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रथनेमीय - अरिष्टनेमि का परिचय
. १५ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
कठिन शब्दार्थ - महिड्डिए - महाऋद्धि वाले, रायलक्खण-संजुए - राजलक्षणों से युक्तां
भावार्थ - शौर्यपुर नगर में महाऋद्धि वाले राजा के लक्षणों और गुणों से युक्त समुद्रविजय नामक राजा थे। .. तस्स भज्जा सिवा णाम, तीसे पुत्तो महायसो।
भयवं अरिट्ठणेमित्ति, लोगणाहे दमीसरे॥४॥
कठिन शब्दार्थ - महायसो - महायशस्वी, लोगणाहे - लोकनाथ, दमीसरे - दमीश्वरजितेन्द्रियों में श्रेष्ठ।
भावार्थ - समुद्रविजय के शिवा नाम की भार्या थी। उसके पुत्र महायशस्वी, परम जितेन्द्रिय तीनों लोक के नाथ, भगवान् अरिष्टनेमि थे।
सोऽरिट्ठणेमि-णामो य, लक्खणस्सरसंजुओ। . अट्ठसहस्स-लक्खणधरो, गोयमो कालगच्छवी॥५॥
कठिन शब्दार्थ - लक्खणस्सरसंजुओ - शौर्य, गाम्भीर्य आदि लक्षणों (गुणों) और सुस्वर से युक्त, अट्ठसहस्स लक्खणधरो - एक हजार आठ लक्षणों के धारक, कालगच्छवीकालकच्छवि - कृष्ण कांति वाले।
. भावार्थ - वे अरिष्टनेमि नामक कुमार लक्षण और स्वरों से संयुक्त, एक हजार आठ शुभ लक्षणों को धारण करने वाले गौतम गोत्रीय और कृष्ण कांतिवाले थे।
विवेचन - उपरोक्त दोनों गाथाओं में भगवान् अरिष्टनेमि के मुख्य आठ विशेषण इस प्रकार दिये हैं - १. महायशस्वी २. भगवान् ३. लोकनाथ ४. दमीश्वर ५. स्वर लक्षणों से युक्त ६. एक हजार आठ लक्षणों से सुशोभित ७. गौतम गोत्रीय और ८. तेजस्वी श्याम कांतिमय शरीर वाले।
वर्तमान में तीर्थंकर न होते हुए भी भावी नैगमनय की अपेक्षा से अरिष्टनेमि को महायशस्वी भगवान्, लोकनाथ एवं दमीश्वर कहा गया है। वस्तुतः जो तीर्थंकर होते हैं वे जन्म से ही विशिष्ट शक्तियों तथा ऐश्वर्य से सम्पन्न एवं मनोविजयी होते हैं। ये चारों विशेषण तीर्थंकर के अंतरंग परिचायक हैं। तीर्थंकर की बाह्य पहचान के चार विशेषण हैं -
१. स्वर लक्षणों से युक्त - वे उत्तम लक्षणों से युक्त स्वर से सम्पन्न थे। २. एक हजार आठ लक्षण धारक - तीर्थंकर के शरीर में स्वस्तिक, वृषभ, श्रीवत्स,
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