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व्यक्तित्व के उदाभ से वंगमन को एक उत्कान्स कहानी कह रहा है।
साध्वी श्री उमरायक्वरजी निश्चयही एक उच्च संस्का खती सन्तरी है, बाल वैधव्य का अभिशाप उन्हें मिला किन्तु इस तेजस्विनी मारी ने ग्य, तितिक्षा एवं मुभुक्षा के उरात भाटों द्वारा उसे राम के रूप में बदल डाला | भोग लिप्सा के सा पर विरक्ति तथा विमुक्ति की भव्य भावना उनके अनार म में संप्रतिष्ठ हो गई । उन्होंने बाल व्यभरा जैन जमणी का जीवन स्वीकार किया।
गवती दीक्षा सेप्रारंभ कर साधना के दुर्गम पध-पर अन्त: पराक्रम तथा सत्साह के साथ गतिशील उनका जीवन एक ऐसा महाकाध्य है, जिसके प्रत्यक सर्ग से स्वधर्भ का घोष मुखरित है।
___ साध्वी भी उमरावकवरजी जैन आम, या crer प्राध्यात्मिक साहित्य का पुष्कल अययन किया। अपने अध्ययन को उन्होंने बानी बधा रखनी का ही सीमित नहीं रखकर यधाव: जीधन में उतारा जो उनके साधनासिक्त , गंभोर व्यक्तित्व से झलकण है
अमा- जीवन के दो प? - स्वकल्याण तथा परकल्याण था लोक कल्याण | साध्वीजी ने दोनों को साधा। आत्मसाधिष्का तो
ही राजस्थान से कारमीर तक की दुर्गम, दुष्कर पद यात्रा उन द्वारा किए जाते लोक कल्याण मय कार्यों का एक उदाहरण है जो उनकी इस दिशा में सतत अागामिण का सूचक है। EE वासी जन साध्वीश्रृंद मः संभवत: काश्मीर की
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