________________ स्त्रीचरित्रकुचउतंग कुंचकि कसी, भंवर करत गुंजार / मानौं बैबुरजी सरस, रची आय करतार 34 . यह स्त्रियोंके शरीरकी शोभा है, इप्त शौभाको देख. कर कामीजन मोहित होजाते हैंदोहा-आशक बनत छिनालके, जो बेहूदी नार॥मालिक अपना छोंडके, करती कैयो 'यार // 35 // कहा न अबला करसकै, कहा न सिंधुसमाय॥कहा न पावको जरै, कहा काल नहि खाय // 36 // पुरुषोंको योग्य है कि, दुष्ट स्त्रियोंके कुसंगसे सर्वदा बचे रहें; क्योंकि-- दोहा काम जात निजदेहसे, दाम गांठसे जात। कुलके उत्तम धर्मसब,सो तुरन्त नशि जात॥३७॥ यासों दुष्टा नारिको, भूलि करौ तथा Ac. Gunratnasuri M.S, Jun Gun Andhak Trus