________________ 168. स्त्रीचरित्र. चारी व सभासद्गण प्रजावर्गसहित चित्रलिखेसे रहगये. - बस अब केवल राजाकी आज्ञाहीकी देरी थी, कि यकायक एक श्याम वसनधारे अस्त्र शस्त्र परिपूर्ण युवा अश्वारूढ आकर मदनमोहन शास्त्रीके सन्मुख खडा होगया उसका अद्भुत वेष और तेज. मुखकी कान्ति, तथा -पराक्रम देखकर दर्शकगणोंके मनमें अनेक भाव प्रगट होने लगे, इतनेहीमें अश्वारूढके मुखसे यह वचन निकला. ___ आर्या छन्द / इति निजबन्धुवियोगादग्नेर्वाला दहति मे देहम् // अहह समागमयोगादायातस्मि विसृज्य वै गेहम् // .. दोहा-प्राणप्रिय विरहाग्निसे, दग्ध होत मम अंग // मिलन हेत अत्रागमन, त्यागि. सबनको संग॥१॥ उसका यह वचन सुन, उसको पहचानकर मदन मोहनने उत्तर दिया, कि P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Gun Aaradhak Trust