________________ भाषाटीकासहित 183 पातेही लालाजी वहांसे घर पहुँचाये, शेते के हुई. कपडे लत्ते भीगकर लतपत होगये. नई पोशाक लोया इतरकी खुशबू और गुलाब छिडक गया. तीसरी बार भुइंहारोंका झुंड बुलाया गया. उनमें से एक भुइंहार सबकी ओरसे बोला, महाराज ! हम सब आपकी गौवें, आप हमारे कल्पवृक्ष अन्नदाता हैं हरसाल हम हो पुजा होरी जरावें तपार्वे, पूरी पिचकियां और दक्षिणा पावें, सात साखिसे हमारो यही कामु है, खेत माफी जागीर इसीकी बदौलत, राजो रईस अमीरों जिमींदारासे खाते पाते और चैन करते. सांझ सबेरे लोटा भांगका चढाये तरमाल भोग लगाते हैं, 'न ऊधौकी लेने न माधाकी देने' हमारपास पक्के कागजपर पट्टा लिखे धरे हैं. यह कहकर सब भुइंहार एक ओर बैठगये. चौथीवार छोटीजातका झुंड बुलाया गया. वे सब जाघातक धोती पहरे,नंगे पांव,शिर नंगा, कोईकोई शिरपर मुरैठा बांधे कोई 2 टोपी दिये, कोई सब देह कोई मुंह काला किये, कोई 2 माथेपर कालखकी, खोर बीच में सिं PP.Ac. Canratnasuri M:S.. Jun Gun Aaradhake Trust