Book Title: Stree Charitra Part 01
Author(s): Narayandas Mishr
Publisher: Hariprasad Bhagirath

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Page 204
________________ . भाषाटीकासहित. - यह सुनकर महाराजने कहा, पंडितजी! आपका कथन शास्त्रान कूल है, इसीसे हमारे चित्तपर अंकित हागया है, वास्तवमें नवीन अन्नसे यज्ञ करनेका नियम ध्वसमयमें शुर, वर्तावसे यह बात सत्य प्रतीत होती है. आर ऐसा प्रतीत होता है, कि धनी पुरुष विषय भोगमें आसक्त होगये, योर निर्धनी पुरुष लाचार होगये, केवल लकडी इकट्ठी कर उसको जलाय नवीन अन्न उसमें फेंकनेकी प्रथा शेष रही, और यह जो गाली गुहार व असभ्यताका व्यवहार है, सो मूखाँकी मूर्खता है, क्योंकि मूर्ख लोग हंसी दिल्लगी मसखरीमेंही आनन्द समझते हैं. शिष्टजन कदापि ऐसी बातोंको उत्तम नहीं समझते और अपने अपने , घर होलीमें हवन करते सुने जाते हैं." अब हम निर्णय करते हैं कि, होली उन्हीं पुरुषोंकी ठीक समझना चाहिये जो उस दिन अपने अपने घर हवन करें, और परमात्माका स्मरण करते हुये जगवके P.P.AC.Gunratnasuri.M.S. Jun.Gun Aaradhak Trust

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