________________ 202 स्त्रीचरित्र. उपकारमें उद्यत रहनेका प्रयत्न करते हैं. और परम -- आनन्दको प्राप्त होवें // इति // - इति श्रीमत्पण्डितनारायणप्रसादमिश्रलखीमपुरनिवासीलिखित स्त्रीचरित्रोत्तरभाग समाप्त // . . स्त्रीचरित्र प्रथमभाग समाप्त। xपोलेकी समाप्ति हा॥. उननस प्रथम माग भार है. इसको पढ़नेसे आपको विदित हो जायगा कि, यह उपेन है. एक और भी यहांपर लिखना परमावश्यक है कि, उपन्यासमें संयोग और वियोगान्तताका विचार किया जाता है. यह "श्रीकान्ता " उपन्यास * : सैयोगान्त उपन्यास है...... " इतनाही बतलाना पाठकोंके लिये हम योग्य समझते हैं कि ज्यों ज्यों इस उपन्यासको पाठकजन पढते जायगे त्या त्यों उसमें रुचि बढ़ती जायगी.. चार भागोंमें यह पुस्तक समाप्त होनेके कारण चारों भागोंका परस्पर स्वम्बन्ध है चारों भाग शीघ्रही छपकर प्रकाशित होंगे. ऐसी आशा है. की०॥) - आ. ट. ख. 2 आ. .. पुस्तक मिलनेका ठिकानाहरिप्रसाद भगीरथजी, कालिकादेवीरोड-रामवाडी-मुंबई P.P.AC. Gunratnasuri M.S.