Book Title: Stree Charitra Part 01
Author(s): Narayandas Mishr
Publisher: Hariprasad Bhagirath

View full book text
Previous | Next

Page 199
________________ 196: स्त्रीचरित्र. यह कह तब भांड एक आहसर्द भर मुंह नीचेको हाल एक तरफको जाबैठे. आठवीं बार पंडित लोग बुलाये गये, उनको स्वरूपन और तेजस्वी देखकर महाराजने बडे आदरसे विठाया उनसे एक पंडितजी बोले, महाराज ! शास्त्रोंमें लिखाहै के, मनुष्यका धर्म परोपकार करनेका है, सो यज्ञोंदारा हो सकता है. यथालो०॥आचारहीनस्य तु ब्राह्मणस्य वेदाः वडंगा अखिलाः संयज्ञाः। कां प्रीतिमुत्पाद येतुं समर्था ह्यन्धस्य दाराइव दर्शनीया॥१॥ इति वसिष्ठस्मृति अ० 6. - अर्थ-जैसे अन्धे मनुष्याको स्वरूपवती स्त्रीके दर्शन का कुछ सुख प्राप्त नहीं होता. ऐसेही जिसके आचार अच्छे नहीं हैं उसको वेद और वेदके छः अंग पढ़ने और सम्पूर्ण यज्ञोंके करनेसे कुछ फल प्राप्त नहीं होता

Loading...

Page Navigation
1 ... 197 198 199 200 201 202 203 204 205