________________ स्त्रीचरित्र. पांचवीं वार रामजनी और रंडी बुलाई गई. वे सब मंगल नुखी, सदासुखी, शिरसे पांवतक जडाऊ गहनेसे लदी हुई. जालीकी सारी ओढे, पेशवा पहने, पान चावती हुई, बडी शानसे आपहुंची और बोली महाराजकी बढती बनीरहे बोल बाला रहे. हम लोग तो बढतीकी साथी हैं. इस दिनका हमेशा आसरा करती रहती है कि कब होली आवै. हम गावें सुना आपलोगोंसे कुछ पार्दै और मजा उडावे. सो हमारी तो होली बनी बनाई है. दोचार. मुरीद इस त्योहारमें मूंडे धरेहैं. इसकी वदौलत हम जेवर, मकान बनाती, 'उमदा 2 कपडे बनाती पहिरती हैं. हमारी बराबरी कोई नहीं कर सकता. जहां कहीं नाच मुजेरेमें बुलाई गई मानो हमने उठती जवानीवाले पट्टे मालदारको मूंडा फिर क्या वह हमारे पंजेसे निकलकर जासकताहै. कभी नहीं ऐसा कोई मर्द हम दुनिया नहीं देखतीं कि जिसको हम अपने कटाक्षसे न वेधलें. ख्याल करलीजिये कि होली स्त्री और हम लोगभी स्त्रियां हैं होली हमारी सखी है / फिर Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunrathasuri M.S.