Book Title: Stree Charitra Part 01
Author(s): Narayandas Mishr
Publisher: Hariprasad Bhagirath

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Page 174
________________ भाषाटीकासहित 171 * तुह्मारी कन्याकी और इसकी अतुल अलौकिक प्रीति है, अतः अब उचित यही है, कि इन दोनोंका ल्यिानुसार विवाह कर दिया जाय. यह कहकर राजाने सब गुप्तभेद गुप्तरीतिसे कह सुनाया, और यहभी कहा कि यदि ऐसा प्रवन्ध और भय न देते, तो औरौंको शिक्षा न होती, और ये दोनों प्रेमी आश्चर्य नहीं कि प्राण छोड देते. अहाहा ! अब क्या था ? यह सुखसम्बाद सुनकर मंत्री बुद्धिसागरजी अति प्रसन्न हुए, और उसी समयसे विवाहोत्सवका प्रारंभ किया, मंगल पूर्वक दोनोंका विवाह होगया. नगरभरके हर्षकी सीमा न रही. एकमात्र आनन्दका सागर उमड पडा. सुख सारता प्रबल प्रवाहसे वहने लगी, आनन्द कादम्बिनी गई, और मंगल वर्षा होने लगी, हृदयभूमि हरी सहुई, प्रेमवल्ली लहलहा उठी, अनुराग पवन बहने साहाद्रप्रसूनकी सुगन्धसे आशा पूर्ण हो गई. + मारे हठात् मेरी लेखनीभी रुकगई, क्या इससभा कर किसी प्रेमसरिताका प्रवाह होगा. परमात्मा इसी कर सर्वेदा सच्चे प्रेमियोंकी अभिलाष पूर्ण करे. इति / / un Aaradhak Trust

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