________________ स्त्रीचरित्रः सुखदर्शन शास्त्री जो सरकारी चोर है, उसे शीघ्र लाओ सो चलो. सुखदर्शनजी पहलेही नित्यकृत्यसे निवृत्त - होकर तैयार होरहे थे. महाराजकी आज्ञा सुनतेही कोतवालके साथ होलिये, यह चरित्र देखतेही नगरके लोग कोलाहल करने लगे, कि अरे ! यह विचार सुपात्र ब्राह्मण आज सरकारी चोर बनाया गया. प्रथम तो 'पुलिस' ही महाराज है देखा! यह क्रूरप्रकृति कोतवाल - इस पंडितको कैसे असभ्य व्यवहारसे लिये जाताहै, क्या महाराजने इसको ऐसे कुव्यवहारकी आज्ञा दी होगी. इधर मदनमोहनजी कोलाहल सुनकर जागपड़े जो प्रेमप्रमादमदसे अचेत सो रहेथे, मित्रको गया सुन सहसा उठे दौडे, मार्गमें कोतवाल के साथ मित्रको देखकर कहा, कोतवालसाहब ! कृपा करके आप इन्हें छोडदें. क्योंकि सरकारी चोर हम हैं, हमको लेचलो. प्रेमवृत्तिके प्रबल होनेसे सुखदर्शनने कहा, महाशय ! ये झूठे हैं हमही चोर हैं. इस प्रकार दोनोंका वचन सुनकर कोतवालसाहब 'बछवाके ताऊ' बनगये. बुद्धि चकरागई, बहा धर्मसंकट P.AC..Gunratnasuri un Badhah