________________ स्त्रीचरित्र. भाव जाननेकी इच्छासे सबकी दृष्टि महाराज के सन्मुख 'लगरही थी, उससमय महाराज अपने मनमें विचार कर रहेथे, कि अहा ! जो मैं इतना यत्न न करता, - और दोनों स्थानों में छिपकर प्रिया प्रीतमका अलौकिक प्रेम न देखता, तथा समस्त भेद न जानता, अथवा केवल दूतोकेही भरोसेपर रहता, तो आज अवश्य एक -निरपराधी व्यक्तिका प्राणजाता, राजाके आलसी होनेसे कितनेही निरपराधी जवोंका अमूल्य प्राण राजकर्मचारियोंकी लीलासे जाया करता है. यदि कोई वास्तवमें वधिकभी हो तो उसेभी प्राणदंड देना सर्वथा अयोग्य और सभ्यसमाजमें दूषित है. क्योंकि प्राणदंड क्षणिक है, - इससे शिक्षा लाभ पूर्ण प्रकारसे नहीं हो सकता. इस लिये यदि ऐसे ऐसे घोर पापियोंको सकठिन परिश्रम -- कारागृह निरोध हो तो प्रजासंख्याभी कम न हो और अहर्निश उसका दृष्टान्त प्रत्यक्ष रहनेसे औरोंको भये - बाहुल्यद्वारा तमोगुणकी उत्पत्तिभी कमहो, तथा घोर व्य भिचारकी संख्याभी कमहो जायः धन्य है उस परमात्मा Ac:Gunjatnasuril Jun Gun Aaradhak Trust.