________________ 163 . भाषाटीकासहित सीमा न रही, आधिक क्या कहा जाय, दोनोंमें बहुत कुछ बातचीत हुई, इस अन्तिम भेटका क्लेश लिखनेको लेखनीमें बल नहीं है. यहांपर इतनाही लिखना योग्य है, कि मदनमोहन शास्त्री, अपनी प्राणवल्लभाको वहीं / परमेश्वरके भरोसे छोडकर अपने मित्र मुखदर्शनको आय मिले, और शेष रात्रि निद्रामें निमम होकर विताई। अहा ! प्रभातहालकी शोभाभी अतुल है, अंशुमाली भगवान् भास्कर उदयाचल चूडावलम्बी हुये, संसारी जीव यावत् निजव्यापारमें प्रवृत्त हुये क्या इससमय प्रजापतिके निद्राका समय है ? अत एव बन्दीजनोंसे संस्तूयमान महाराजाधिराज जागृत हुये. और ईश्वराभि बादनादि नित्यकृत्यसे निवृत्त होकर गजसभामें अतीवो. मत सिहासनपर विराजमान हये. मंत्रिप्रवरादि राजकर्म पारा अपने 2 कार्योंकी उत्कृष्टता दिखाने के लिये पहले. हास स्थित थे. सकल सभासद्गुण समय उपस्थित हो कर नृपतिको प्रमाण करकर अपने अपने उचित स्थान पर विराजमान होने लगे, और उस दिनका P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust