________________ - भाषाटीकासहित. 161 - तच्छ जचती है; अहा ! वह विशालभाल, वह भ्रकुटिकटिल शरजाल, वो तीक्ष्ण आश्रवणावलम्बित नेत्राल, वह सर्वदा प्रसन्नचरणारविन्द, वो मधुर कोकिलस्वर, वो पीनोन्नत कुचकलश, वो मत्तमतंगगमन, वो हंसपद विन्यास, अवलोकन मात्रसेही किसे नहीं निरीह कर देता है ? क्या इसके आगे और कोई दुःख मुझे व्याप - सकता दै ? इतनी बातें कहकर मदनमोहन बोला, हे मित्र ! अब तुह्मारी आज्ञा पाऊं तो मैं इस समय अपनी - प्राणप्रियासे अन्तिम भेंटकर आऊं.. ... यह सुनकर सुखदर्शनने कहा मित्र! तुह्मारी व्यवस्था.. - देख सुनकर मेरा चित्तही ठिकाने नहीं रहा, यदि तुमको नहीं जाने देताहूं, तोभी नहीं बनता और फिर जानेमें . कोई अन्य आपत्ति आजाय तो फिर क्या करूंगा. मदन' माहनने कहा.मित्र! संसारमें प्राण जानेसे बढकर और कोई.. आपत्ति नहीं है, आप किसी बातकी चिंता न कीजिये, निस्सन्देह मुझको जाने दीजिये, मैं शीघ्रही लौटकर आ जगा. यह कह मदनमोहन वहांसे चलदिया. रात . P.P.AC.GunratnasuriM.S..... . . Jun Gun Aaradhak Trust