________________ 159 भाषाटीकासहित. स्मरण करके मदनमोहनने न्यायाधीशसे कहा, महाशय! एकबार फिरभी आप मुझपर अनुग्रह करे, मेरे एक सुखदर्शन नाम मित्र है, वे आपका मनोरथ पूर्ण प्रकारसे करेंगे, और मुझको इस बन्धनसे अवश्य छुडा-येंगे ! यह सुनकर राजाने अपने मनमें सोचा कि माता पितासे श्रेष्ठ जगतमें दूसरा कोई नहीं है जब पितानेही - इसकी सहायता नहीं की, तो फिर दूसरा कौन इसका सहायक हो सकता है 'जो हो. ईश्वरकी महिमा अद्भुत है, प्रेमपथ निराला है और इसका नाश कभी नहीं होता -इस प्रेमके प्रतापसे अपने पराये होजाते हैं और पराये * अपने बनजाते हैं यदि किसीको कुछ कहनेकी जगह नहीं है तो प्रेममार्ग में. इत्यादि विचार कर राजाने कहा अच्छा चलो. तुमारे मित्रकीभी करतूत देखलें, यह कहकर आगे बढ़े मित्रके द्वारपर पहुँचकर मदनमोहनने किंवाड खटखटाये और पुकारा, सुनतेही सुखदर्शनकी आँख खुलगई, झट द्वारपर आय कोतवाल के संग अपने मित्र मदनमाइनको देखकर कहा, ऐं? यह क्या कौतुक है, कोतवाल * PP.AC.Gunratnasuri M.S. ' ..Jun Gun Aaradhak Trust...