________________ स्त्रीचरित्र - पैसाभी नहीं है. जो व्यर्थ दिया जावै. इसप्रकार कहते हये 'घरमें चलेंगये, और भीतरसे किंवाड बंद करलिये. पंडितजीका यह रूखापन देखकर राजा अपने मनमें आश्चर्ययु. क्त होकर सोहने लगा, ओहो ! कुकर्म ऐसी वस्तु है, प्रिय पुत्रकी सहायता पिताके किंचिन्मात्रभी अंगीकार नहीं. E न्याय ऐसा पदार्थ है कि घूस लेनातो क्या, देनाभी कोई स्वीकार नहीं करसकता, आहा! अविचल न्यायका अद्भुत चमत्कार है यह सोच विचार राजा चोरका हाथ पकड लेचला. उस समय मदनमोहनके दुःखकी सीमा न रही दुःख सहित कहने लगा, कि इस संसारमें कोई किसी का नहीं और जो है सो मतलबका यार है. हा!" कालस्य कुटिला गतिः।"कालकी कुटिल गति है. जब खोटे दिन आतेहैं, तब पिताभी पुत्रकी सहायता नहीं करता, अब क्योंकर कन्याणकी आशा हो सकती है. यह सब कुछ है, परन्तु प्रीतिका पंथ निरालाही है. उसमें कभी कोई भयही नहीं तो फिर क्यों न एकबार अपनी भाग्यकी परीक्षा करलू, अन्तमें भावी तो मुख्यही है, यह P.AC.GunratnasuriM.S. Jun-Gun Aaradhak Trust