________________ 1081017 * भाषाटीकासहित. बनता तो अवश्य जाओ. मैं आशा लगाये बैठीरहूंगी और धरिज धरलूंगी. चम्पकलीकी बात सुनकर आशा भरो.. सा दे तम्बोली चलागया. तब चम्पकली मनमें प्रसन्न होकर कहनेलगी, कि अब चारदिनके लिये मैं सुचित होगई, तबतक तो बेखटक आनन्द करलूं. फिर देखा जायगा. यह सोच समझकर कोठेपर चढगई और जो खिडकी गलीमेंको थी, उसमें बैठकर ताक झाक लगाने लगी. इतनेमें एक साहूकारका लडका बहुत सुन्दर अ. च्छे अच्छे कपडे पहने इतर लगाये पान खाये धीरेधीरे टहलता हुआ उसीगलीमें होकर निकला. उसकी चाल. और उसके रूपकी छटाको देखकर तम्बोलिन उसपर ऐसी मोहित होगई कि उसको अपने तनमनकी सुधि भूलगई, फिर तुरन्तही समलकर सोचने लगी कि, यदि यह हाथसे निकल जायगा तो फिर इसको हम कहां खोजेंगी, पीछेसे पछतानेके सिवाय कुछ हाथ, नहीं आवेगा. यह सोच समझ खिड़कीसे अपना शिर बाहर निकाला, तुरन्त उस साहूकार जादेकी निगाह P.P.AC. Gunratnasuri M.S. . Jun Gun Aaradhak Trust