________________ स्त्रीचरित्र. - कछु कीजै काज॥ बिनाविचारे काजमें आ वत अति डरलाज // 12 // - सखीकी यह बात सुनकर सुन्दरी बोली दोहा। जा तनमें लागी अधिक कठिन इश्ककी मारासो दुख वोही जानता जाके होगइ पार // ॥१३॥लागीलागी सब कहैं,लागीबुरी बलाय॥लागी जबही जानिये, वारपर व्है जाय ॥१४॥इश्क आगतनमें लगी, धुवां प्रगट नहि होय // याको दुख वह जानि है, जात न लागी सोय // 15 // -- यह गति तो उस मुन्दरीकी थी कि, जिसको देखकर सब सहेलियां विचार करने लगीं कि, इसको इस इश्करूपी बलासे बचानेका क्या उपाय करें, बडा संकट आन पडा है। उधर उस ब्राह्मणकुमार मदनमोहनने देखा कि, प्यारी सुन्दरी अपनी सहेलियोंके साथ ज्यों P.P.AC. Gunratnasuri Jur Gun Aaradhak Trust