________________ भाषाटीकासहित. नारि। सब दुखकी दाता यही, देखौं सोच विचार // 37 // __मुखदर्शनकी यह बात सुनकर मदनमोहन कहने लगा कि, हे मित्र / इस संसारमें स्त्रीके सिवाय आनन्द रूपी वस्तु और कोई नहीं है, जिस मनुष्यने इस संसारमें आकर स्त्रीरूपी रत्न सेवन नहीं किया. उस मनुष्यका जीवन वृथा है किसी कविका वचन हैदोहा-परमानन्द सनेहमय, युवतीजनको संग // बड़े पुण्यते पाइये, नारि मनोहर अंग // 38 // कुण्डलिया। पंडित जन जब करत हैं, तिय तजिवेकी बात / करत वृथा बकवाद वह, तजी नेक नाह जात // तजीनेक नहीं जात गात छबि कनक वरन वर / कमलपत्रसम नयन बैन चालत अमृत वर // सोहत मृदु मुखहाथ P.P.AC.Guhratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust