________________ 154 स्त्रीचरित्र. इस कर्मसे अनेकोंका प्राणधन लिया होगा, चल तो सही कलं राजाके समीप तुझे अपने कर्मोंको स्वीकार करना पडेगा, और क्या किसी प्रकारभी अब तेरा प्राण बचसकता है. नगररक्षककी यह बात सुनकर मदन मोहन घबडाकर मनमें विचार करने लगा, कि हा देव! इस समय मैं चोर जानकर पकडा गया, मेरे आनन्दशैलपर ऐसा वज्रघात ! क्या सचमुच, यहांका न्यायपरायण राजा मुझको चोर समझकर प्राणदंड देदेगा ! क्या जगदी श्वर परमात्मा मुझ निरपराधीकी कुछभी सहायता नहीं करे ? भरे ! राजाके सेवकोंकी ऐसी उत्कृष्टता ? यह बलात्कार ? इन अन्याइयों के मारे अनेक निरपराधियों अमूल्य प्राणधन जाते होंगे यदि ईश्वर सत्य और मैं नि: दोषी, तथा राजा न्यायपरायण हैं, तो इन व्यर्थ भूकने: वालोंसे मुझको क्या हानि पहुँच सकती है, परंतुं ऐसे समयमें धैर्य धारण करना चाहिये, आगे 'हरेरिच्छाबलीयसी' हरिकी जो इच्छा है वही होगा, क्योंकि हरिकी इच्छा सबसे अधिक बलवती है. अब मुझको . P.P:AC.Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust