________________ .. भाषाटीकासहित. ही चली गई, त्योंही विरहसे व्याकुल होकर पृथ्वीपर गिरपडा और यह दोहा पढने लगादो-हाय दैव कैसी भई,कहा विचारी आज॥ नयनन तेग चलायके, गई कहांकों भाज // // 16 // हे प्यारी कितको छिपी, मार विरहके बान ॥वचनअमी समप्याइये, निजकरअपने आन // 17 // _ मित्रकी यह दशा देखकर सुखदर्शनने कहा, हे "प्यारे मदनमोहन ! इतने बडे शास्त्री होकर तुह्मारी यह क्या गतिहुई. क्या विद्या पढनेका यही फल है, कि बना सोच विचारे एक साधारण स्त्रीको देखकर तुमारा मन हाथसे जाता रहा. देखो वसन्तऋतुका आगम जानकर हम तुमको इस वाटिकाकी सुगन्धित पवनसे तुह्मारे चित्तको प्रसन्न कराने के लिये अपनेसाथ लायेथे, .. सा तुमने यहां आकार ऋतुकी बहारको छोडकर यौवनकी बहार देखी, और अपने धर्मसे विरुद्ध काम किया देखो P.P.AC.Gunratnasuri.M.S. Jun Gun Aaradhak Trust