________________ स्त्रीचरित्र. 118 खटका नहीं. यह समझ ज्योंही पंडितजी कुछ कहना चाहते थे, त्योंही महदेई पंडितका हाथ पकडकर अपने . पलंगपर लेगई और हावभाव दर्शाय प्रेमकी बातें करने लगी. पंडितजीभी महदेई के प्रेममें ऐसे मग होगये, कि अपने तनमनकी सुधि न रही. इतनेमें महदेईके एक यारने द्वार खटखटाया और पुकारा कि किंवाड खोलदो.. पंडितजीने पूछा कि द्वारपर कौन आया है. मह. देईने कहा, हमारा भाई आया है. तब तो पंडितजी घबरा कर कहने लगे, मुझको किसीतरह बचाओ. तब महदेईने पंडितजीको सन्दूकमें बन्दकर दिया, और ताली अपने पास रखली, दासीसे कहा कि जाकर किवाडा खोल दे. जब यार घरके भीतर आया तो महदेईसे कहने लगा, कि प्यारी आज दखाजेके किंवाडे क्यों बन्द कर लिये और इतनी देरके बाद क्यों खोले गये. महदेईने कहा, प्यारे आज हमारे यहां एक पंडित आया है उससे हमने अपने पतिके आनेका विचार कराया, फिर कुछ मेरे मनमें आया तो उसके साथ भोगविलास करने P.P.AC. Gunratnasuri M. Jun Gun Aaradhak Trust