________________ भाषाटीकासहित. 125 नहीं रहना चाहिये किन्तु अपने आपभी यथाशक्ति. यत्न करते रहना चाहिये; इसप्रकार सोच विचारकर - राजा विद्याभूषण प्रायः अर्द्धरात्रि के समय अपना वेष बदलकर नगररक्षकोंकी भाति वस्त्र पहिन चंपावती नगरीके चारों ओर निरन्तर भ्रमण किया करता था. कभी कभी भिक्षुककेवेषसे तथा अन्यान्य उपायोंसे नगरीके म.. न्दिरों सभाओं तथा गानमण्डलियोंमें प्रवेश करके प्रजाका समाचार जाननेकी पूर्णतः चेष्टा किया करता था. .. ऐसे प्रजाके आशयोंको हृदयंगम करनेवाला राज्यभार.. वाहक्षम, न्यायपरायण महीपतिके राज्यमें क्या चोर.. बदमाश, शठ, लम्पट, उठाईगीरे, डाकू, कुकर्मी रहसकतेहैं, अथवा उसकी प्रजा दुष्टोंसे विविध कष्ट पाय दुःखी-- दरिद्री, पीडित और अन्यायग्रस्त रह सकती है ? कभी नहीं रात्रिके परिभ्रमणसे राजा विद्याभूषण कदापि विरत नहा रहता था और अपने राज्यमें सुप्रबन्ध देखकर अपने श्रमसिन्धुमें मग्न हो गवरहित राजा सदा परमेश्वरहीको धन्यवाद दिया करता था. आहा ! वह पुरुष . .. P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun.Gun Aaradhak Trusti