________________ 122 स्त्रीचरित्र. ईने कहा, स्वामी ! तुमने मुझको महादुखी कर रक्खा है परदेशको जाकर महीनों मेरी सुधि नहीं लेतेहो तुम्हारी यादमें आज चार दिनसे मेरा शिर दुखता है. इसीसे मैं आज उदास पडी थी, दिनभर होगया, अभीतक भोजन नहीं किया है. यह बात सुनकर सौदागरने कहा, प्यारी ! घबडानेकी बात नहीं हम अभी बाजारसे शिरकी दवाई लिये आते हैं. यह कह सौदागर दवाई लेने गयामहदेईने कोठरीका ताला खोलकर अपने यारको निकाल , दिया, फिर सन्दूकका ताला खोलकर पंडितजीको . निकाला, और पूछा कि पंडितजी ! आपकी इस बडी पोथीमें कहीं यह चरित्रभी लिखा है कि जो चरित्र हमने तुमको दिखलाया. यह सुनकर पंडितजी बोले, कि धन्य है, स्त्रीचरित अपार है, कोई कहातक पार पावै. यह कहकर पंडित वहां से भागा और अपने घर आकर स्त्री. . '. चरित्रकी जो पोथी बनाईथी, उसको पटक दिया।इति।। इति श्रीमत्पंडितनारायणपसादमिश्रलिखित स्त्रीचरित्रका पूर्वार्द्ध समाप्त / PP. Ac. Gunratnasuri M.S. I Jun Gun Aaradhak Trust