________________ भाषाटीकासहित 47 विपत्तिसे अपनेको बचानेका उपाय निकालना स्थिर करलिया, तब उसने सुरमेकी पिंशलसे एक कागजके टुकडेपर अपने पतिको यह पत्र लिखा, मेरे स्वामी ! मैंने जो आपके साथ अनुचित व्यवहार किया वह मेरे मनसे कभी भूलनेवाला नहीं है, उसकी आग मेरे जीको जलरही है अब एक पलभरभी जीनेकी इच्छा नहीं है मेरे पापका फल यही है कि मैं अपना प्राणत्याग दूं पर मुझको इस पापके कारण नरकमें भी जगह न मिलेगी, इसीसे अब मरनेसेभी डर लगताहै, अब मुझे समझ आई कि मैं आपके शरणमें रहकर आपकी सेवा करनेसे परम सुखी रहसकतीथी, पर अब समझ आनेपर क्या होताहै, और पछतायेभी कुछ हाथ नहीं आता, “अब पछिताये कहा होति, जब चिडियां चुनाई खेत' जैसा भारी पाप मैंने कियाहै उसके आगे आत्महत्त्या क्या वस्तु है, इतनी बडी पृथिवीके आगे वालूका कण क्या चीज है, पहाडके सामने एक तिनका क्या पदार्थ है, मारे दुःख के मेरा कलेजा जलरहा है, किस मुखसे P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust