________________ 96 स्त्रीचरित्र व्यको अन्धा, कान रहते बहिरा, और वाणी रहते मूक बना देती है. - “मूकत्त्वं बधिरत्वं लक्ष्मीःकरोति नरस्य को दोषः॥ गरलसहादरभ्राता तच्चित्रं यन्न मा रयति'। __ वाणी रहते मृक और कान रहते बधिर लक्ष्मी करती है, मनुष्यका कोई दोष नहीं. क्योंकि समुद्रमे निकली हुई लक्ष्मीका छोटा भाई विष है. यह आश्चर्य है कि लक्ष्मवि'न् पुरुष लक्ष्मीके घमंडसे निर्धनीकी ओर भली भांती न देखता है, न बोलता है,न उमकी बातको ध्यान देके सुनता है, अन्धों और बहिरो की नाई टाल देता है। . सेठानी अनेक बातें सोच समझ अपना भाग्योदय जान ब्राह्यणदेवताका दाथ पकड एकान्तमें लेगई... उसने फिर एक पलंगपर बैठा हाव भाव कटाक्षकर प्रेमभाव दर्शया, तब उस पवित्रमूर्ति छलने अपना कामदेव रूप जल पान कराय सेठानीजीकी प्यासको बुझाया, और P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust