________________ स्त्रीचरित्र. तब बालक मुखी रहकर विद्या पढने में मन लगाता है, दिन दिन उसकी कान्ति बढती है, सेठानीजी ! जब पहले मैं तुमारे यहां अपने पिताके साथ आया करताथा तब मैं कमसमझ था, पढ़ने लिखने के लिये मुझको ता. डना दी जाया करतीथी. फिर जब मैं ननिहालको गया वहां मेरे नाना बडे भारी पंडित हैं, उनके पास में पढने लगा और दोचार वर्षमें विद्याका कुछ आनन्द आया. तब मैं प्रसन्नतासे विद्या पढने लगा, शरीरमें बल बढने लगा, मस्तकपर तेज झलकने लगा, वायकी रुकावटसे दिन दिन हमारी कांति बढने लगी, नानाके घर किसी बातकी कमी नहीं है, खाने पहिरनेका क्लेश हमको कभी नहीं हुआ यही हमारे सुन्दर होने का कारण है. यह सुनकर सेठानीजी बोली कि, तुह्मारा कहना बहुत ठीक है. तुह्मारा रूप देखकर हमारा मनं हमारे काबूम , नहीं रहा. उचित है, कि तुम मुझको रतिदान देकर / जाओ. सुनतेही लडका बोला सेठानीजी ! तुह्मारा कहना हमको अंगीकार नहीं. सुनो P.AC: Gunrathasuri Sun Aaradhak Trus