________________ 76 स्त्रीचरित्र - पतिव्रता सुन्दरीको इतने दिनतक सताया, और रोगिनी बनाया, क्या तू नहीं जानता कि स्त्रियोंकी औषधी स्त्रियांही जानती हैं स्त्रीके रोगको कोई वैद्य अच्छा नहीं करसकता, तूने नाहक अपनी स्त्रीको इतने दिनतक / घुलाया, मैंने उसका रोग पहचान लिया है, ईश्वरकी कृपासे एकही दिनमें अच्छाकर सकतीहूं परन्तु चारों =: रुपये खर्च होंगे, जब तेरी स्त्री अच्छी होजाय तब देना. क्योंकि मैं किसीके साथ छल कपट नहीं करतीहूं यह बात सुनकर उस सुनारने मनमें सोचा कि यह बुढिया तो मेरी स्त्रीको अच्छा करदेने उपरान्त रुपये मांगती है तो क्या हर्ज,है, यह सोचकर बोला, माई ! इतने रूपये क्या वस्तु है, यदि हमारे प्राणतक काम आवे तो अपनी स्त्रीके लिये देसकताहूं हमारी स्त्री हमको अपने प्राणोंसे भी अधिक प्यारी है. बुढिया बोली कि एकसमय यही रोग मेरी लडकीको होगया था. और यही हाल उसकाभी था तब अनायास एक फकीर मुझको मिला मैंने अपनी लडकीका हाल कहा, तब फकीरने आकर लडकीको : Jun Gun Aaradhak Trust .P.P.AC.Gunratnasuri