________________ भाषाटीकासहित. बैठ बैठकर तीन चार यार बना लिये, जब साहूकार दूकानपर चला जाता था तब सेठानीजी अपने यारोंके साथ रमणकरके मनही मन प्रसन्न रहतीथीं. परन्तु इस चतुराईसे काम करती थीं कि एककी मुधि दूसरे यारको नहीं होती थी. क्योंकि साहूकारका घर बहुत बड था, और सेठानीजी इसकाममें बहुत चतुर होगई थीं. जब इच्छा होती थी तब रातकोभी किसी यारको बुलालिया करती थी. ऐसेही विहार करते हुये सेठानीजीको कई महीना बीतगये. कभी कभी सेठजी अपनी दूकानकी वही साथ लाकर दिनका भूला हुआ हिसाब उसपर ठीक करके लिख लेतथे. वह वही एक दिन घरपर भूलकर दूकानको चले गये. वहां बैठे तो याद हुई कि, वही घरपर रहगई, इतने में सेठजीके पुरोहितका लडका दूका. "नके सामने होकर निकला. देखतेही सेठजीने पुकारकर कहा कि हमारे घर चले जाओ. आज हम वहीखाता भूल आये हैं, सो हमारे लिये लादो. नौकर कानपर कई एक हैं परन्तु हमैं किसीका विश्वास नहीं तुम हमारे पुरो .P.P.AC.Gunratnasuri-MS Juh Gun Aaradhak Trust..