________________ स्त्रीचरित्र. दिन तनुक्षीण मनमलीन होने लगी. मेरे स्वामीको देखनेके लिये गांवके लोग लुगाई आया करते और देखकर दुःख प्रकाश करते थे. - लुगाइयोंमें कोई कोई लुगाई मुझसे कुटनीपनका वर्ताव करने लगी. परन्तु मैंने समझा बुझाकर टाल दिया. मनुष्यों में कई एक लोग औझकसे मेरा रूप देखकर कटाक्ष चलाते थे.. / दोहा-बिनभूषणही सोहही, चतुर नारिकर भाव / चहियत नाहीं अंगूरको, मिश्रीमधुर मिलाव॥२॥जहं सुगन्ध भौरा तहां, उडत रहैं करि प्रीति / मानुष लोभी रूपको, करै नारिसों प्रीति // 3 // करि सुगन्धसो प्रीति अति, बैठे कमल न जाय। अस्तभये रविके भवर, बैठ प्राण गंवाय // 4 // ... कुछ दिन सेवा करते करते जब मेरे स्वामीको आराम होने लगी, तब मेरी चित्त कुछ कुछ प्रसन्न हुवा, और मेरी सेवासे स्वामीजीभी मुझपर