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५, ३, १२.) फासाणुओगद्दारे दवफासो
(१३ दवेण पुस्सिज्जदि, असंगहियणेगमणयमस्सिदूण लोगागासपदेसमेत्तधम्मदव्वपदेसाणं पुध पुध लद्धदव्वववएसाणमण्णोण्णं पासुवलंभादो ।३। अधम्मदव्वमधम्मदव्वेण पुस्सिज्जदि, तक्खंध-देस-पदेस परमाणूणमसंगहियणेगमणएण पत्तदव्वभावाणमेयत्तदंसणादो ।४। कालदव्वं कालदव्वेण पुस्सिज्जदि, लोगागासपदेसमेत्तकालपरमाणूणं एगक्खेतठइदमुत्ताहलाणं व समवायवज्जियाणं कालभावेण एयत्तुवलंभादो एगलोगागासावद्वाणेण एयत्तदंसणादो वा । ५। आगासदत्वमागासदत्वेण पुस्सिज्जदि, आगासक्खंधदेस-पदेस-परमाणूणं णेगमणएण पुध पुध लद्धदव्वभावाणं अण्णोण्णफासुवलंभादो। ६ । एत्थुव उज्जतीओ गाहाओ
लोगागासपदेसे एक्केके जे ट्ठिया हु एक्केका । रयणाणं रासी इव ते कालाणू मुणेयव्वा ॥२॥ खंधं सयलसमत्थं तस्स दु अद्धं भणं ति देसो त्ति ।
अद्धद्धं च पदेसो अविभागी जो स परमाणू * ॥ ३ ॥ संपहि दुसंजोगेण दव्वभंगुप्पत्ती कीरदे। तं जहा-जीवदव्वेण पोग्गलदव्वं पुसिज्जदि; जीवदव्वस्स अणंताणंतकम्म-णोकम्मपोग्गलक्खंधेहि एयत्तदंसणादो। ७ । जीव-धम्मदउनमें एकत्व देखा जाता है । २ । धर्म द्रव्य धर्म द्रव्य के द्वारा स्पर्शको प्राप्त होता है, क्योंकि असंग्रहिक नैगम नयकी अपेक्षा लोकाकाशके प्रदेश प्रमाण और पृथक् पृथक् द्रव्य संज्ञाको प्राप्त हुए धर्म द्रव्यके प्रदेशोंका परस्परमें स्पर्श देखा जाता है। ३ । अधर्म द्रव्य अधर्म द्रव्यके द्वारा स्पर्शको प्राप्त होता है, क्योंकि असंग्रहिक नैगमनयको अपेक्षा द्रव्यभावको प्राप्त हुए अधर्म द्रव्यके स्कन्ध, देश, प्रदेश और परमाणुओंका एकत्व देखा जाता है । ४ । काल द्रव्य काल द्रव्यके द्वारा स्पर्शको प्राप्त होता है, क्योंकि एक क्षेत्रमें स्थापित मुक्ताफलोंके समान समवायसे रहित लोकाकाशके प्रदेश प्रमाण कालपरमाणुओंका कालरूपसे एकत्व देखा जाता है; अथवा एक लोकाकाशमें अवस्थान होनेसे उनमें एकत्व देखा जाता हैं । ५ । आकाश द्रव्य आकाश द्रव्यके द्वारा स्पर्शको प्राप्त हो रहा है, क्योंकि नैगम नयकी अपेक्षा पृथक् पृथक् द्वव्यभावको प्राप्त हुए आकाशके स्कन्ध, देश, प्रदेश और परमाणओंका परस्पर स्पर्श देखा जाता है। ६ । प्रकृतमें उपयुक्त गाथाएं
लोकाकाशके एक एक प्रदेशपर रत्नोंकी राशिके समान जो एक एक स्थित हैं वे कालाणु हैं, ऐसा जानना चाहिये ।। २ ।।।
जो सर्वांशमें समर्थ है उसे स्कन्ध कहते हैं। उसके आधेको देश और आधेके आधेको प्रदेश कहते हैं । तथा जो अविभागी है उसे परमाणु कहते हैं ।। ३॥
__ अब द्विसंयोगकी अपेक्षा द्रव्यके भंगोंकी उत्पत्तिका कथन करते हैं। यथा-जीव द्रव्यके द्वारा पुद्गल द्रव्य स्पर्श किया जाता है,क्योंकि जीव द्रव्यका अनन्तानन्त कर्म व नोकर्मरूप पुद्गलस्कन्धोंके साथ एकत्व देखा जाता है । ७। जीवद्रव्य और धर्मद्रव्यका परस्परमें स्पर्श है, क्योंकि,
B अ-ताप्रत्योः 'एगखेत्तं रइद' इति पाठः ॐ गो. जी. ५८८. * पंचा. ७५, मूला. १३१, ति. प. १-९५, गो. जी. ६०३.
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