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छक्खंडागमे वग्गणा-खंडं
( ५, ४, २६. अंगंगबाहिरआगमवायण-पुच्छणाणुपेहा-परियटुण-धग्मकहाओ सज्झायो णाम। उत्तमसंहननस्य एकाग्रचितानिरोधो ध्यानम् । एत्थ गाहा
जं थिरमज्झवसाणं तं झाणं जं चलंतयं * चित्तं।
तं होइ भावणा वा अणुपेहा वा अहव चिंता ।। १२॥ तत्थ झाणे चत्तारि अहियारा होंति-ध्याता व्ययं ध्यानं ध्यानफलमिति तत्थ उत्तमसंघडणो ओघबलो ओघसूरो चोद्दसपुव्वहरो वा दस-णवपुव्वहरो वा, णाणेण विणा अणवगयणवपयत्थस्स झाणाणुववत्तीदो। जदि णवपयत्थविसयणाणेणेव ज्झाणस्स संभवो होइ तो चोद्दस-दस-णवपुव्वधरे मोत्तूण अण्णेसि पि ज्झाणं किण्ण संपज्जदे, चोदस-दस-णवपुव्वेहि विणा थोवेण वि गंथेण णवपयत्थावगमोवलंभादो? ण, थोवेण गंथेण णिस्सेसमवगंतुं बीजबुद्धिमुणिणो मोतूण अण्णेसिमुवायाभावादो। जीवाजीवपुण्ण-पाव-आसव-संवर-णिज्जरा-बंध-मोक्खेहि णवहि पयत्थेहि वदिरित्तमण्णं ण कि पि अस्थि, अणुवलंभादो। तम्हा ण थोवेण सुदेण एदे अवगंतुं सक्किज्जते, विरोहादो।
अंग और अंगबाह्य आगमकी वाचना, पृच्छना, अनुप्रेक्षा, परिवर्तना और धर्मकथा करना स्वाध्याय नामका तप है।
उत्तम संहननवालेका एकाग्र होकर चिन्ताका निरोध करना ध्यान नामका तप है। इस विषयमें गाथा
जो परिणामोंकी स्थिरता होती है उसका नाम ध्यान है और जो चित्तका एक पदार्थसे दुसरे पदार्थमें चलायमान होना है वह या तो भावना है या अनुप्रेक्षा है या चिन्ता है ।। १२ ।।
ध्यानके विषय में चार अधिकार हैं-ध्याता, ध्येय, ध्यान और ध्यानफल। (१) जो उत्तम संहननवाला, निसर्गसे बलशाली, निसर्गसे शूर, चौदह पूर्वोको धारण करनेवाला या नौ दस पूर्वोको धारण करनेवाला होता है वह ध्याता है; क्योंकि, इतना ज्ञान हुए विना जिसने नौ पदार्थोंको भले प्रकार नहीं जाना है उसके ध्यानकी उत्पत्ति नहीं हो सकती।
शंका- यदि नौ पदार्थ विषयक ज्ञानसे ही ध्यानकी प्राप्ति सम्भव है तो चौदह, दस और नौ पूर्वधारियोंके सिवा अन्यको भी वह ध्यान क्यों नहीं प्राप्त होता; क्योंकि, चौदह, दस और नौ पूर्वोके विना स्तोक ग्रन्थसे भी नौ पदार्थविषयक ज्ञान देखा जाता है।
समाधान- नहीं, क्योंकि, स्तोक ग्रन्थसे बीजबुद्धि मुनि ही पूरा जान सकते हैं, उनके सिवा दूसरे मुनियोंको जानने का अन्य कोई साधन नहीं है।
जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध और मोक्ष ; इन नौ पदार्थोके सिवा अन्य कुछ भी नहीं है, क्योंकि, इनके सिवा अन्य कोई पदार्थ उपलब्ध नहीं होता। इसलिये स्तोक श्रुतसे इनका ज्ञान करना शक्य नहीं है, क्योंकि, ऐसा मानने में विरोध आता है। और
ॐ तत्त्वा. ९-२७. * आ-ताप्रत्योः 'चलत्तयं' इति पाठः। 6 प्रतिषु 'ध्याताध्येयध्यानध्यानफलमिति' इति पाठ: । आ-ताप्रत्यो: 'चोदसम्बहरो वा' इति पाठः। -अ-आप्रत्योः ‘मणण्ण इति पाठः ।
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