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५, ५, ४८. )
पडिअणुओगद्दारे सुदणाणभेदपरूवणा ( २६९ पुणो संधादसुदणाणस्सुवरि एगवखरे वढिदे संघादसमाससुदणाणं होदि । एत्थ वि संघादे गदे सो वि संघादो ति कादूण संघादसमासो जुज्जदि ति वत्तव्वं । एवमेगेगक्खररड्ढिकमेण संघादसमाससुदणाणं वड्ढमाणं गच्छदि ताव एगक्खरेणूण गदिमग्गणे ति । पुणो एत्थ एगवखरे वढिदे पडिवतिसुदणाणं होदि । होतं पि संखेज्जाणि संघादसुदणाणि घेतण एवं पडिवत्तिसुदणाणं होदि । अणुयोगद्दारस्स जे अहियारा तत्थ एक्कस्स अहियारस्स पडिवत्ति ति सण्णा । एगवखरेणणसव्वाहियाराणं पडिवत्तिसमासो ति सण्णा । पडिवत्तीए जै अहियारा तत्थ एक्केक्कहियारस्स संघाने ति सण्णा । एगक्खरेणणसव्वाहियाराणं संघादसमासो त्ति सण्णा । एदमत्थपदं सव्वत्थ पउंजिदव्वं ।
पुणो पडिवत्तिसुदणाणस्सुवरि एगक्खरे वढिदे पडिवत्तिसमाससुदणाण होदि । एवमेगेगक्खरवढिकमेण पडिवत्तिसमाससुदणाणं वड्ढमाणं गच्छदि जाव एगक्खरेणूणअणुयोगद्दारसुदणाणे त्ति । पुणो एत्थ एगक्खरे वढिदे अणुयोगद्दारसुदणाणं होदि किमणुयोगद्दारं णाम ? पाहुडस्स जे अहियारा तत्थ एक्केक्कस्स पाहुडपाहुडे ति सण्णा । पाहुड
पुनः संघात श्रुतज्ञानके ऊपर एक अक्षरकी वृद्धि होनेपर संघातसमास श्रुतज्ञान होता है । यहांपर भी संघातके अतीत होनेपर वह भी संघात है, ऐसा समझकर संघातसमास बन जाता है। ऐसा कहना चाहिये । इस प्रकार एक एक अक्षरकी वृद्धिके क्रमसे बढता हुआ एक अक्षरसे न्यून गतिमार्गणाविषयक ज्ञानके प्राप्त होने तक संघातसमास श्रुतज्ञान होता है । पुनः इस ज्ञानपर एक अक्षरकी वृद्धि होनेपर प्रतिपत्ति श्रुतज्ञान होता है। ऐसा होता हुआ भी संख्यात संधात श्रुतज्ञानोंका आश्रय कर एक प्रतिपत्ति श्रुतज्ञान होता है। अनुयोगद्वारके जितने अधिकार होते हैं उनमें से एक अधिकारकी प्रतिपत्ति संज्ञा है और एक अक्षरसे न्यून सब अधिकारोंकी प्रतिपत्तिसमास संज्ञा है । प्रतिपत्तिके जितने अधिकार होते हैं उनमेंसे एक एक अधिकारकी संघात संज्ञा है और एक अक्षर न्यून सब अधिकारोंकी संघातसमास संज्ञा है । इस अर्थपदका सब जगह क्थन करना चाहिय ।
विशेषार्थ- आशय यह है कि एक अक्षरज्ञान और पदज्ञानके मध्यका जितता ज्ञान हैं वह अक्षरसमास कहलाता है। इसी प्रकार पदज्ञान और संघातज्ञानके मध्यका जितना ज्ञान है वह पदसमास कहलाता है। तथा संघातज्ञान और प्रतिपत्तिज्ञानके मध्यका जितना ज्ञान है वह संघातसमास ज्ञान कहलाता है । इसी प्रकार आगे भी अनुयोगद्वारसमास, प्राभृतप्राभृतसमास, प्राभूतसमास, वस्तुसमास और पूर्वसमासका कथन करना चाहिये।
पुनः प्रतिपत्ति श्रुतज्ञानके ऊपर एक अक्षरकी वृद्धि होनेपर प्रतिपत्तिसमास श्रुतज्ञान होता है। इस प्रकार एक एक अक्षरकी वद्धिके क्रमसे बढता हुआ एक अक्षरसे न्यन अनयोगद्वार श्रुतज्ञानके प्राप्त होनेतक प्रतिपत्तिसमास श्रुतज्ञान जाता है । पुन: इसमें एक अक्षरकी वृद्धि होनेपर अनुयोगद्वार श्रुतज्ञान होता है।
शंका- अनुयोगद्वार किसको संज्ञा हैं ? समाधान- प्राभृतके जितने अधिकार होते हैं उनमेंसे एक एक अधिकारकी प्राभृत
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