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५, ५, ५९.) पयडिअणुओगद्दारे ओहिणाणस्स दव्व-खेत्तादिपरूवणा (३१३ गुणा ति अप्पाबहुअवयणादो । णेदं पहाणं, ओगाहणडहरत्तं* णाणमहत्तस्स ण कारणमिदि पुव्वं परविदत्तादो । तेण सुहमत्तं चेव भासाणाणमहल्लत्तस्स कारणमिदि घेत्तव्वं । किमेत्थ सुहमत्तं? दुगेज्झतं । एसो अत्थो अण्णत्थ वि पओत्तम्वो। च-सद्दो किमट्ठो? अवत्तसमुच्चयट्ठो । तेण मणदव्ववग्गणमेगं जाणतो खेत्तदो असंखेज्जे दीव-समुद्दे कालदो असंखेज्जाणि वस्साणि जाणदि । णवरि भासाखेत्त-कालेहितों असंखेज्जगुणे जाणदि । जदि वि भासाए वग्गणपदेसेहितो अणंतगुणपदेसे हि एगा मणदव्ववग्गणा आरद्धा, तो वि मणदव्ववग्गणाए ओगाहणा भासावग्गणाओगाहणादो असंखेज्जगणहीणा ति मणदव्ववग्गणविसयमोहिणाणं बहुअमिदि भणिदं । कम्मइयदव्ववग्गणं जाणंतो खेत्तदो असंखेज्जे दीव-समुद्दे कालदो असंखेज्जाणि वस्साणि जाणदि । वरि एयमणदव्ववग्गणविसयओहिणाणखेत्तकालहितो एयकम्मइयदव्ववग्गणविसयओहिणाणखेत्तकाला असंखेज्जगणा । एवं तिरिक्खमणस्से अस्सिदूण ओहिणाणदव्व-खेत्त-कालाणं परूवणं करिय देवाणमोहिणाणविसयपरूवणमुत्तरगाहासुत्तं भणदिअवगाहना असंख्यातगुणी होती है । " इस अल्पबहुत्वसे जाना जाता है ।
किन्तु इसकी प्रधानता नहीं है, क्योंकि, अवगाहनाकी अल्पता ज्ञानके बडेपनका कारण नहीं है, यह पहिले कहा जा चुका है ! इसलिए सूक्ष्मता ही भाषाज्ञानके बडेपनका कारण है, ऐसा यहां ग्रहण करना चाहिए ।
शंका- यहां सूक्ष्म शब्दका क्या अर्थ है ? समाधान- जिसका ग्रहण करना कठिन हो वह सूक्ष्म कहलाता है । यह अर्थ अन्यत्र भी कहना चाहिए।" शंका- गाथासूत्र में 'च' शब्द किसलिए आया है ? समाधान- वह अनुक्त अर्थका समुच्चय करनेके लिए आया है।
इसलिए मनोद्रव्य सम्बन्धी एक वर्गणाको जाननेवाला क्षेत्रकी अपेक्षा असंख्यात द्वीपसमुद्रोंको और कालकी अपेक्षा असंख्यात वर्षोंको जानता है, इस अर्थका यहां ग्रहण होता है । इतनी विशेषता है कि यह भाषावर्गणा सम्बन्धी क्षेत्र और कालकी अपेक्षा असंख्यातगुणे क्षेत्र और कालको जानता है । यद्यपि भाषाकी एक वर्गणाके प्रदेशोंसे अनन्तगुणे प्रदेशों द्वारा एक मनोद्रव्यवर्गणा निष्पन्न होती है, तो भी मनोद्रव्यवर्गणाकी अवगाहना भाषावर्गणाकी अवगाहनासे असंख्यातगुणी हीन होती है, इसलिए मनोद्रव्यवर्गणाको विषय करनेवाला अवधिज्ञान बडा होता है, यह कहा है । कार्मणद्रव्यवर्गणाको जाननेवाला क्षेत्रकी अपेक्षा असंख्यात द्वीपसमुद्रोंको और कालकी अपेक्षा असंख्यात वर्षोंको जानता है । इतनी विशेषता है कि एक मनोद्रव्यवर्गणाको विषय करनेवाले अवधिज्ञानके क्षेत्र और कालकी अपेक्षा एक कार्मणद्रव्यवर्गणाको विषय करनेवाले अवधिज्ञानका क्षेत्र और काल असंख्यातगुणा होता है । इस प्रकार तिथंच और मनुष्योंका आश्रय कर अवधिज्ञानके द्रव्य, क्षेत्र और कालका कथन करके अब देवोंके अवधिज्ञानके विषयका कथन करने के लिए आगेका गाथासूत्र कहते हैं
*प्रतिषु — दहरत्तं ' इति पाठः
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