Book Title: Shatkhandagama Pustak 13
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 404
________________ ५, ५, १०६. ) पर्याअणुओगद्दारे णामपय डिपरूवणा ( ३६७ का जुत्ती ? कारणबहुत्तेन विणा भमर-पयंग-मायंग-तुरंगादीणं बहुत्ताणुववत्तीदोॐ । संपहि उत्तरुत्तरपयडिपमाणपरूवणट्ठमुत्तरसुत्तं भणदि जं तं गदिणामकम्मं तं चउब्विहं - णिरयगइणामं तिरिक्खग-इणामं मणुस्सगदिणामं देवगविणामं ॥ १०२ ॥ जं तं जाविणामं तं पंचविहं - एइंदियजादिणामं बेइंदियजादिणामं तेइंदियजाविणामं चउरिदियजादिणामं पंचिदियजादिणामं चेदि० ।। १०३ ॥ जं तं सरीरणामं तं पंचविहं - ओरालियसरीरणामं वेउब्वियसरीरणामं आहारसरीरणामं तेजइयसरीरणामं कम्मइयसरीरणाम चेवि ॥ १०४ ॥ जं तं सरीरबंधणणामं तं पचविहं - ओरालियसरीरबंधणणामं वेजव्वियसरी रगंधणणामं आहारसरीरगंधणणामं तेजइयसरीरबंधणामं कम्वइयसरीरबंधणणामं चेदि ॥ १०५ ॥ जं तं सरीरसंघादणामं तं पंचविहं- ओरालियसरीरसंघादणामं वेडव्वियसरीरसंघावणामं आहारसरीरसंघादणामं तेजइयसरोरसंघावणामं कम्मइयसरीरसंघादणामं चेदि ॥ १०६ ॥ आदिक नाना भेद नहीं बन सकते हैं। इससे जाना जाता है कि त्रसादि प्रकृतियां बहुत हैं । अब उत्तरोत्तर प्रकृतियों के प्रमाणका कथन करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैंजो गति नामकर्म है वह चार प्रकारका है- नरकगति नामकर्म, तिर्यंचगति नामकर्म, देवगति नामकर्म और मनुष्यगति नामकर्म ॥ १०२ ॥ जो जाति नामकर्म है वह पांच प्रकारका है- एकेन्द्रियजाति, द्वीन्द्रियजाति, त्रीन्द्रियजाति, चतुरिन्द्रियजाति और पंचेन्द्रियजाति नामकर्म ॥ १०३ ॥ जो शरीर नामकर्म है वह पांच प्रकारका है- औदारिकशरीर, वै क्रियिकशरीर, आहारकशरीर, तैजसशरीर, और कार्मणशरीर नामकर्म ।। १०४ ॥ जो शरीरबन्धन नामकर्म है वह पांच प्रकारका है - औदारिकशरीरबन्धन, वैक्रियिकशरीरबन्धन, आहारकशरीरबन्धन, तैजसशरीरबन्धन और कार्मणशरीरबन्धन नामकर्म ॥ १०५ ॥ जो शरीरसंघात नामकर्म है वह पांच प्रकारका है - औदारिकशरीरसंघात, वैक्रियिकशरीरसंघात, आहारकशरीरसंघात, तैजसशरीरसंघात और कार्मणशरीरसंघात नामकर्म ॥। १०६ ।। तातो वहुत्ताणुववत्ती ' इति पाठ: 10 षट्खं जी चू. १, २९ षट्ख. जी. चू. १, ३१. षट्खं. जी. चू. १, ३२. २५ षट्खं. जी. चू. १, ३३. For Private & Personal Use Only षट्खं. जी. चू. १, ३०. Jain Education International www.jainelibrary.org

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