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३८६) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
(५, ५, १२८. घणलोगे भागे हिदे सेडीए असंखेज्जविभागस्स उवलंभादो ।
भूओ अप्पाबहुअं ॥ १२८॥ पुव्वमप्पाबहुगं भणिदूण किमळं पुणो वुच्चदे ? अण्णं पि वक्खाणंतरमत्थि त्ति जाणावणठें।
सम्वत्थोवाओ मणुसगइपाओग्गाणुपुग्विणामाए पयडीओ।१२९।
कुदो ? पणदालीसजोयणलक्खबाहल्लाणं तिरियपदराणमद्धच्छेदणएहि सव्वोगाहणट्ठाणेसु गुणिदेसु मणुसगइपाओग्गाणुपुग्विणामाए पयडोणं सव्ववियप्पुप्पत्तीदो।
णिरयगइपाओग्गाणुपुग्विणामाए पयडीओ असंखेज्ज-- गुणाओ॥ १३०॥ __को गुणगारो ? असंखेज्जाणि जगपदराणि। कुदो ? हेटिमओगाहणट्ठाणेहितो उवरिमओगाहगट्टाणाणि विसेसहीणाणि त्ति अवणिय हेद्विमपलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेण अंगुलस्स असंखेज्जदिमागबाहल्लतिरियपदरे भागे हिदे असंखेज्जतिरियपदरुवलंभादो ।
__ देवगइपाओग्गाणुपुविणामाए पयडीओ असंखेज्ज-- गुणाओ॥१३१ ॥
को गणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो। कारणं सुगमं । तिर्यप्रतरसे घनलोकको भाजित करनेपर श्रेणीका असंख्यातवां भाग उपलब्ध होता है ।
पुनः अल्पबहुत्व कहते हैं ॥ १२८ ।। शंका - पहले इसी अल्पबहुत्वको कहकर अब उसे पुन: किसलिए कहते हैं ?
समाधान - अन्य भी व्याख्यानान्तर है, इस बातका ज्ञान करानेके लिए उसका कथन फिरसे भी किया जा रहा है।
मनुष्यगतिप्रायोग्यानपूर्वी नामकर्मको प्रकृतियां सबसे अल्प हैं ।। १२९ ।।
क्योंकि, पैंतालीस लाख योजन बाहल्यरूप तिर्यप्रतरोंके अर्धच्छेदोंसे सब अवगाहनास्थानोंको गुणित करनेपर मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी नामक प्रकृतिसे सब विकल्प उत्पत्र होते हैं । उनसे नरकगतिप्रायोग्यानपूर्वी नामकर्मको प्रकतियां असंख्यातगुणी हैं। १३० ।
गुणकार क्या है ? असंख्यात जगप्रतर गुणकार हैं, क्योंकि, पिछले अवगाहनास्थानोंसे अगले अवगाहनस्थान विशेष हीन हैं, इसलिए उन्हें छोडकर पिछले पल्योपमके असंख्यातवें भागका अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण बाहल्यरूप तिर्यक् प्रतरमें भाग देनेपर असंख्यात तिर्यक्प्रतर उपलब्ध होते हैं। उनसे देवगतिप्रायोग्यानपूर्वी नामकर्मको प्रकृतियां असंख्यातगणी हैं ॥१३१॥ गुणकार क्या है ? गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है । कारण सुगम है ।
" काप्रती 'मणसजाइ' इति पाठः 1
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