Book Title: Shatkhandagama Pustak 13
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 403
________________ ३६६ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ( ५, ५, १०१. होदि तं सुहगणामं । जस्स कम्मस्सुदएण जीवो गृहवो होदि तं दूभगं णामं । जस्स कम्मस्सुदएण कण्णसुहो सरो होदि तं सुस्सरणामं । जस्स कम्मस्सुदएण खरोट्टाणं व कण्णसुहो सरोण होदि तं दुस्सरणामं । जस्स कम्मस्सुदएण जीवो आदेज्जो होदि तमादेज्जणामं । जस्स कम्मस्सुदएण सोभणाणुट्टाणो वि जीवो ण गउरविज्जदि तमणादेज्जं णाम । जस्स कम्मस्सुवएण जसो कित्तिज्जइ जणवयेण तं जसगित्तिणामं । जस्स कम्मस्सुदएण अजसो कित्तिज्जइ के लोएण तमजसगित्तिणामं । जस्स कम्मस्सुदएण अंग-पच्चंगाणं ठाणं पमाणं च जादिवसेग गियमिज्जदि तं णिमिणणामं । जस्स कम्मस्सुदएण जीवो पंचमहाकल्लाणाणि पाविण तित्थं दुबालसंग कुणदि तं तित्थयरणामं । एवमेदाओ बादालीसं पिंडपयडीयो । को विंडो णाम ? बहूणं पयडीणं संदोहो पिंडो । तसादिपयडीणं बहुत्तं णत्थि त्ति ताओ अपिंडपयडीओ त्ति ण घेत्तव्यं, तत्थ वि बहूणं पयडीणमुवलंभादो । कुदो तदुवलद्धी ? जुत्तीदो । सुभग नामकर्म है । जिस कर्मके उदयसे जीवके दौर्भाग्य होता है वह दुभंग नामकर्म है । जिस कर्मके उदयसे कानोंको प्यारा लगनेवाला स्वर होता है वह सुस्वर नामकर्म है। जिस कर्मके उदयसे गधा एवं ऊंटके समान कर्णोंको प्रिय लगनेवाला स्वर नहीं होता है वह दुस्वर नामकर्म है । जिस कर्मके उदयसे जीव आदेय होता है वह आदेय नामकर्म है । जिस कर्मके उदय से अच्छा कार्य करनेपर भी जीव गौरवको प्राप्त नहीं होता हैं वह अनादेय नामकर्म है । जिस कर्मके उदयसे जनसमूहके द्वारा यश गाया जाता है अर्थात् कहा जाता है वह यशः कीर्ति नामकर्म है । जिस कर्म के उदयसे लोग अपयश कहते हैं वह अयशःकीर्ति नामकर्म है । जिस कर्मके उदयसे अंग प्रत्यंगका स्थान और प्रमाण अपनी अपनी जातिके अनुसार नियमित किया जाता है वह निर्माण नामकर्म है । जिस कर्मके उदयसे जीव पांच महाकल्याणकोंको प्राप्त करके तीर्थ अर्थात् बारह अंगोंकी रचना करता है वह तीर्थंकर नामकर्म है । इस प्रकार ये ब्यालीस पिण्डप्रकृतियां हैं । शंका- पिण्डका अर्थ क्या है ? समाधान - बहुत प्रकृतियोंका समुदाय पिण्ड कहा जाता है । शंका- त्रस आदि प्रकृतियां तो बहुत नहीं हैं, इसलिए क्या वे अपिण्डप्रकृतियां हैं ? समाधान - ऐसा ग्रहण नहीं करना चाहिए, क्योंकि, वहां भी बहुत प्रकृतियोंकी उपलब्धि होती है । शंका- वहां बहुत प्रकृतियोंकी उपलब्धि कैसे होती है ? समाधान - युक्तिसे । शंका- वह युक्ति कौनसी है ? समाधान- क्योंकि, कारणके बहुत हुए विना भ्रमर, पतंग, हाथी और घोडा अ आ-काप्रतिषु ' सरो होदि' इति पाठः । Jain Education International 2) प्रतिषु गित्तिज्जइ' इति पाठ: 1 For Private & Personal Use Only ' www.jainelibrary.org.

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