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छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
( ५, ५, ६२.
तिविहमुजुमदिमणपज्जयणाणं तेण तदावरण पितिविहं होदि । मणस्स कधमजुगतं ? जो जधा अत्थो द्विदो तं तधा चितयंतो मणो उज्जगो णाम । तस्विवरीयो मणो अणुज्जुगो । कधं वयणस्स उज्जुवत्तं ? जो जेम अत्थो द्विओ तं तेम जाणावयंतं वयणं उज्जुवं णाम तविवरीयमणुज्जवं । कधं कायस्स उपज वत्तं ? जो जहा अत्थो द्विदो तं तहा चेव अहिणइदूण दरिसयंतो* काओ उज्जुओ णाम । तग्विवरीयो अणुज्जुओ णाम तत्थ जं उज्जवं पउणं होदूण मणस्स गदमठे जाणदि तमुजुमदिमणपज्जयणाणं। अचितियमचितियं विवरीयभावेण चितियं च अट्ठ ण जाणदि त्ति भगिद होदि ।
जमुज्जन पउणं होदूण चितिसं पउणंट चेव उल्लविदमट्ठ जागवि तं पि उजुर्मादमणपज्जयणाणं णाम । अबोल्लिदमद्धबोल्लिदं विवरीयभावेण बोल्लिदं च अळं ण जाणदि त्ति भणिदं होदि , ऋज्वी मतिर्यस्मिन् मनः-- पर्ययज्ञाने तत् ऋजमतिमनःपर्ययज्ञानमिति व्युत्पत्तः । उज्जुववचिगदस्स मणपज्जयणाणस्स उजुमदिमणपज्जयववएसो. ण पावदि ति ? ण, एत्थ वि ऋजुकायगत अर्थको विषय करता है; अतः ऋजुमतिमनःपर्ययज्ञान तीन प्रकारका है और इसीसे तदावरण कर्म भी तीन प्रकारका है ।
शंका- मनको ऋजुपना कैसे आता है ?
समाधान - जो अर्थ जिस प्रकारसे स्थित है उसका उस प्रकारसे चिन्तवन करनेवाला मन ऋजु हैं और उससे विपरीत चिन्तवन करनेवाला मन अनुजु हैं।
शंका - वचनमें ऋजुपना कैसे आता है ?
समाधान - जो अर्थ जिस प्रकारसे स्थित है उसे उस प्रकारसे ज्ञापन करनेवाला वचन ऋजु है और उससे विपरीत वचन अनृजु है।
शंका - कायमें ऋजुपना कैसे आता है ?
समाधान - जो अर्थ जिस प्रकारसे स्थित है उसको उसी प्रकारसे अभिनय द्वारा दिखलानेवाला काय ऋजु है और उससे विपरीत काय अनृजु है ।
। उनसे जो ऋजु अर्थात् प्रगुण होकर मनोगत अर्थको जानता है वह ऋजुमतिमनःपर्ययज्ञान है । वह अचिंतित, अर्धचिंतित और विरीपतरूपसे चिंतित अर्थको नहीं जानता है। यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
___ जो ऋजु अर्थात् प्रगुण होकर विचारे गये व सरल रूपसे ही कहे गये अर्थको जानता है वह भी ऋजुमतिमनःपर्ययज्ञान है । यह नहीं बोले गये, आधे बोले गये और विपरीतरूपसे बोले गये अर्थको नहीं जानता है; यह उक्त कथनका तात्पर्य है, क्योंकि, जिस मनःपर्ययज्ञानमें मति ऋजु है वह ऋजुमतिमनःपर्ययज्ञान है; ऐसी इसकी व्युत्पत्ति है। ___शंका - ऋजुवचनगत मनःपर्ययज्ञानकी ऋजुमतिमनःपर्ययज्ञान संज्ञा नहीं प्राप्त होती ?
* अ-आ-ताप्रतिषु ' दरिसमंतो ' इति पाठः। * अ-आप्रत्यो 'पउण्णं , इति पाठः [ 8 काताप्रत्यो 'चिंतियपउणं ' इति पाठ:1.ताप्रती 'पज्जववएसो ' इति पाठः ।
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