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________________ ३३० ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ( ५, ५, ६२. तिविहमुजुमदिमणपज्जयणाणं तेण तदावरण पितिविहं होदि । मणस्स कधमजुगतं ? जो जधा अत्थो द्विदो तं तधा चितयंतो मणो उज्जगो णाम । तस्विवरीयो मणो अणुज्जुगो । कधं वयणस्स उज्जुवत्तं ? जो जेम अत्थो द्विओ तं तेम जाणावयंतं वयणं उज्जुवं णाम तविवरीयमणुज्जवं । कधं कायस्स उपज वत्तं ? जो जहा अत्थो द्विदो तं तहा चेव अहिणइदूण दरिसयंतो* काओ उज्जुओ णाम । तग्विवरीयो अणुज्जुओ णाम तत्थ जं उज्जवं पउणं होदूण मणस्स गदमठे जाणदि तमुजुमदिमणपज्जयणाणं। अचितियमचितियं विवरीयभावेण चितियं च अट्ठ ण जाणदि त्ति भगिद होदि । जमुज्जन पउणं होदूण चितिसं पउणंट चेव उल्लविदमट्ठ जागवि तं पि उजुर्मादमणपज्जयणाणं णाम । अबोल्लिदमद्धबोल्लिदं विवरीयभावेण बोल्लिदं च अळं ण जाणदि त्ति भणिदं होदि , ऋज्वी मतिर्यस्मिन् मनः-- पर्ययज्ञाने तत् ऋजमतिमनःपर्ययज्ञानमिति व्युत्पत्तः । उज्जुववचिगदस्स मणपज्जयणाणस्स उजुमदिमणपज्जयववएसो. ण पावदि ति ? ण, एत्थ वि ऋजुकायगत अर्थको विषय करता है; अतः ऋजुमतिमनःपर्ययज्ञान तीन प्रकारका है और इसीसे तदावरण कर्म भी तीन प्रकारका है । शंका- मनको ऋजुपना कैसे आता है ? समाधान - जो अर्थ जिस प्रकारसे स्थित है उसका उस प्रकारसे चिन्तवन करनेवाला मन ऋजु हैं और उससे विपरीत चिन्तवन करनेवाला मन अनुजु हैं। शंका - वचनमें ऋजुपना कैसे आता है ? समाधान - जो अर्थ जिस प्रकारसे स्थित है उसे उस प्रकारसे ज्ञापन करनेवाला वचन ऋजु है और उससे विपरीत वचन अनृजु है। शंका - कायमें ऋजुपना कैसे आता है ? समाधान - जो अर्थ जिस प्रकारसे स्थित है उसको उसी प्रकारसे अभिनय द्वारा दिखलानेवाला काय ऋजु है और उससे विपरीत काय अनृजु है । । उनसे जो ऋजु अर्थात् प्रगुण होकर मनोगत अर्थको जानता है वह ऋजुमतिमनःपर्ययज्ञान है । वह अचिंतित, अर्धचिंतित और विरीपतरूपसे चिंतित अर्थको नहीं जानता है। यह उक्त कथनका तात्पर्य है। ___ जो ऋजु अर्थात् प्रगुण होकर विचारे गये व सरल रूपसे ही कहे गये अर्थको जानता है वह भी ऋजुमतिमनःपर्ययज्ञान है । यह नहीं बोले गये, आधे बोले गये और विपरीतरूपसे बोले गये अर्थको नहीं जानता है; यह उक्त कथनका तात्पर्य है, क्योंकि, जिस मनःपर्ययज्ञानमें मति ऋजु है वह ऋजुमतिमनःपर्ययज्ञान है; ऐसी इसकी व्युत्पत्ति है। ___शंका - ऋजुवचनगत मनःपर्ययज्ञानकी ऋजुमतिमनःपर्ययज्ञान संज्ञा नहीं प्राप्त होती ? * अ-आ-ताप्रतिषु ' दरिसमंतो ' इति पाठः। * अ-आप्रत्यो 'पउण्णं , इति पाठः [ 8 काताप्रत्यो 'चिंतियपउणं ' इति पाठ:1.ताप्रती 'पज्जववएसो ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org'.
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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