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५, ५, ८२. ) पयडिअणुओगद्दारे केवलणाणपरूवणा
( ३४९ संजोगेण उप्पादेदवा। जीवादिवव्वाणं गिरयादिखेत्तेहि सह मेलणं खेत्तजुडी णाम । तेसिं चेव दव्वाणं विवस-मास-संवच्छरादिकालेहि सह मेलणं कालजुडी णाम । कोहमाण-माया-लोहादीहि सह मेलगं भावजुडी णाम । एदं सव्वं पि जुडिवियप्पं तिकालविसयं सो भयवंतो जाणदि ।
छदवाणं सत्ती अणुभागो जाम । सो च अणभागो छविहो-जीवाणभागो पोग्गलागुभागो धम्मत्थियअणुभागो अधम्मत्थियअणुभागो आगासत्थियअणुभागो कालदव्वाणु. भागो चेदि। तत्थ असेसदव्वावगमो जीवाणुभागो। जर-कुट्टक्खयादिविणासणं तदुप्पायणं च पोग्गलाणुभागो। जोणिपाहुडे भणिदमंत-तंतसत्तीयो पोग्गलाणुभागो त्ति घेत्तव्वो। जीव-पोग्गलाणं गमणागमणहेदुत्तं धम्मत्थियाणुभागो । तेसिमवट्ठाण हेदुत्तं अधम्मस्थियाणुभागो। जीवादिदव्याणमाहारत्तमागासत्थियाणभागो अण्णेसि दम्वाणं कमाकमेहि परिणमणहेदुत्तं कालदव्वाणुभागो। एवं दुसंजोगादिणा अणुभागपरूवणा कायव्वा-जहाँ मट्रिआपिंड-दंड-चक्क-चीवर-जल-कुंभारादीणं घडप्पायणाणभागो । एदमणुभाग पि जाणदि । तों हेतुआपकमित्यनर्थान्तरम् । एवं पि जाणदि । चित्त कम्म-पत्तच्छेज्जादो कला णाम । कलं पि जाणदि । मणोवग्गणाए णिव्वत्तियं हिययपउमं मणो णाम, मणोजणिदणाणं द्वारा द्रव्ययुति उत्पन्न करानी चाहिए । जीवादि द्रव्योंका नारकादि क्षेत्रोंके साथ मिलना क्षेत्रयुति है । उन्हीं द्रव्योंका दिन, महीना और वर्ष आदि कालोंके साथ मिलाप होना कालयुति है। क्रोध, मान, माया और लोभादिकके साथ उनका मिलाप होना भावयुति है । त्रिकालविषयक इन सब युतियोंके भेदको वे भगवान् जानते हैं
छह द्रव्योंकी शक्तिका नाम अनुभाग है । वह अनुभाग छह प्रकारका है-जीवानुभाग, पुद्गलानुभाग, धर्मास्तिकायानुभाग, अधर्मास्तिकायानुभाग, आकाशास्तिकायानुभाग और कालद्रव्यानुभाग । इनमेंसे समस्त द्रव्योंका जानना जीवानुभाग है । ज्वर, कुष्ठ और क्षय आदिका विनाश करना और उत्पन्न कराना इसका नाम पुद्गलानुभाग है । योनिप्राभूतमें कहे गये मंत्रतंत्र-रूप शक्तियोंका नाम पुद्गलानुभाग है, ऐसा यहां ग्रहण करना चाहिए। जीव और पुद्गलोंके गमन और आगमनमें हेतु होना धर्मास्तिकायानुभाग है । उन्हींके अवस्थानमें हेतु होना अधर्मास्तिकायानुभाग है। जीवादि द्रव्योका आधार होना आकाशास्तिकायानुभाग है। अन्य द्रव्योंके क्रम और अक्रमसे परिणमनमें हेतु होना कालद्रव्यानुभाग है। इसी प्रकार द्विसंयोगादि रूपसे अनभागका कथन करना चाहिए । जैसे-मत्तिकापिण्ड, दण्ड, चक्र, चीवर, जल आदिका घटोत्पादन रूप अन भाग। इस अनुभागको भी जानते है। तर्क हेतु और ज्ञापक, र्थवाची शब्द हैं। इसे भी जानते हैं। चित्रकर्म ओर पत्रछेदन आदिका नाम कला है। कलाको भी वे जानते हैं मनोवर्गणासे बने हुए हृदय-कमलका नाम मन है, अथवा मनसे उत्पन्न हुए ज्ञानको मन
@ अ-आ-ताप्रतिषु — हेतु ज्ञापक-', काप्रती ' हेतु ज्ञायक ' इति पाठः 12 अप्रतो ' पत्तच्छेद्यादि', का-ताप्रत्यो 'पत्तच्छेज्जादि ' इति पाठ 1
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