________________
५, ५, ६३.) पडिअणुओगद्दारे उजुमदिमणपज्जयणाणपरूवणा (३३३ जाणदि ति भणिदं होदि । एसो णियमो ण विउलमइस्स, अचितिदाणं पि अडाणं विसईकरणादो। कि किमेदेण जाणिज्जदि त्ति वृत्ते मणपज्जयणाणविसयदिसा परूविज्जदे उत्तरसुत्तखंडेण-- परेसिं सण्णा सदि मदि चिता। जेण सद्दकलावण अत्थो पडिवज्जाविज्जदि सो सहकलाओ सण्णा णाम । तमुजुर्मादमणपज्जयणाणी पच्चक्खं पेच्छदि । विट्ठ-सुदाणुभूविसयणाणविसेसिदजीवो सदी णाम । तं पि पच्चक्खं पेच्छदि । अमत्तो जीवो कधं मणपज्जयणाणेण मुत्तपरिच्छेदियोहिणाणादो हेट्टिमेण परिच्छिज्जदे ? ण, मुत्तट्टकम्मेहि अणादिबंधणबद्धस्स जीवस्स अमत्तत्ताणुववत्तीदो । स्मृतिरमर्ता चेत्- न, जीवादो पुधभूदसदीए अणुवलंभा । अणागयत्थविसयमदिणाणेण विसेसिदजीवो मदीले णाम । तं पि पच्चक्खं जाणदि । वट्टमाणत्य* विसयमदिणाणेण विसेसिदजीवो चिता णाम । तं पच्चक्खं पेच्छदि । एदासि तिविहाँचताणं विसई भदअळं पि जाणदि ति परूवणट्टमुत्तरसुत्तखंडं भणदि- आउपमाण जीविदं णाम । तस्स परिसमती मरणं णाम । एदाणि दो वि जाणदि । जीविदणिद्देसो चेव कायव्वो, एत्तियाणि वस्साणि एसो जीवदि त्ति वयणेण चेव मरणावउक्त कथनका तात्पर्य है। विपुलमतिमन:पर्ययज्ञानका यह नियम नहीं है, क्योंकि, वह अचिन्तित अर्थोंको भी विषय करता है। इसके द्वारा क्या क्या जाना जाता है, ऐसा पूछनेपर सूत्रके उत्तरार्ध द्वारा मनःपर्ययज्ञानके विषयकी दिशाका निरूपण करते हैं- 'परेसिं सण्णा सदि मदि चिता'। जिस शब्दकलापके द्वारा अर्थका कथन किया जाता है उस शब्दकलापको संज्ञा कहते हैं। उसे ऋजुमतिमनःपर्ययज्ञानी प्रत्यक्ष देखता है। दृष्ट, श्रुत और अनुभूत अर्थको विषय करनेवाले ज्ञानसे विशेषित जीवका नाम स्मृति है। इसे भी वह प्रत्यक्षसे देखता है।
__ शंका-- यत: जीव अमूर्त है अतः वह मूर्त अर्थको जाननेवाले अवधिज्ञानसे नीचेके मनःपर्यनज्ञानके द्वारा कैसे जाना जाता है ?
समाधान-- नहीं, क्योंकि संसारी जीव मूर्त आठ कर्मोंके द्वारा अनादिकालीन बन्धनसे बद्ध है, इसलिए वह अमूर्त नहीं हो सकता।
शंका-- स्मृति तो अमूर्त है ? समाधान-- नहीं, क्योंकि स्मृति जीवसे पृथक् नहीं उपलब्ध होती ।
अनागत अर्थको विषय करनेवाले मतिज्ञानसे विशेषित जीवकी मति संज्ञा है, इसे भी वह प्रत्यक्ष जानता है । वर्तमान अर्थको विषय करनेवाले मतिज्ञानसे विशेषित जीवकी चिन्ता संज्ञा है, इसे भी वह प्रत्यक्ष देखता है। इन तीन प्रकारकी चिन्ताओंके विषयभूत अर्थको भी वह जानता है, इस बातका कथन करने के लिए आगे सूत्रखण्ड कहते हैं- आयुके प्रमाणका नाम जीवित और उसकी परिसमाप्तिका नाम मरण है। इन दोनोंको भी जानता है।
शंका-- सूत्र में जीवित ' पदका ही निर्देश करना चाहिये था, क्योंकि, यह इतने वर्षों तक जियेगा, इस वचनसे मरणका ज्ञान हो जाता है ? * का-ताप्रत्यो: ' ट्ठिद ' इति पाठ:1 ४ काप्रती · सेदी , ताप्रती · सदि ' इति पाठ: 1
का-ताप्रत्योः 'मदि ' इति पाठः। प्रतिष 'वद्रमाणस्स ' इति पाठः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org