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५, ५, ६३. )
पयडिअणुओगद्दारे उजुमदिमणपज्जयणाणपरूवणा
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ति जाणदि । नगरट्ठिदी किष्ण परूविदा ? ण, नगरविणासावगमस्स नगरट्ठिदिअवगमेण विणा उप्पत्तिविरोहादो । विणट्ठ पि नगरमेत्तिएण कालेन होदित्ति जादि । सुते विणा कधमेदं नव्वदे । ण, एक्स्स सुत्तस्स देसामासियत्तादो । अंग- बंग- कलिंग - मगधादओ देसो णाम । एदेसि विणासो देसविणासो णाम । तं जादि । एत्थ वि पुव्वं व तिविहा परूवणा कायव्वा । देसस्स एगदेसो जणवओ णाम, जहा सूरसेण गांधार- कासी-आवंति आदओ । एदेसि विणासो जणवयविणासो । तं जादि । एत्थ वि तिविहा परूवणा कायव्वा । सरित्पर्वतावरुद्धं खेडं णाम । तस्स विणासो खेडविणासो । एदम्हादो उवरिमसव्वविणासेसु तिविहा परूवणा कायव्वा । पर्वतावरुद्धं कव्वडं नाम । तस्स विणासो कव्वडविणासो | पंचशतग्रामपरिवारितं मडंबं णाम । तस्स विणासो मडंबविणासो | नावा पादप्रचारेण च यत्र गमन तत्पत्तनं नाम । तस्स विणासो पट्टणविणासो । समुद्र - निम्नगासमीपस्थमवत रन्नौनिवह द्रोणामुखं नाम । तस्स विणासो दोणामुहविणासो । एदं देसामासियं काऊन एत्थ
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नगर विनाश कहलाता है । वह नगरविनाश इतने कालमें होगा, इसे यह ज्ञान जानता है । शंका- सूत्र में नगरकी स्थिति क्यों नहीं कही ?
समाधान -- नहीं, क्योंकि नगरकी स्थितिका ज्ञान हुए विना नगरके विनाशके ज्ञानकी उत्पत्ति मानने में विरोध आता है ।
विनष्ट हुआ भी नगर इतने कालमें बनेगा, इसे भी जानता ?
शंका --- सूत्रके विना यह बात किस प्रमाणसे जानी जाती है ? समाधान -- नहीं, क्योंकि यह सूत्र देशामर्शक है ।
अंग, वंग, कलिंग और मगध आदि देश कहलाते हैं; इनके विनाशकी देशविनाश संज्ञा है। से वह जानता है । यहांपर भी पहले के समान तीन प्रकारकी प्ररूपणा करनी चाहिए । देशका एक देश जनपद कहलाता है । यथा शूरसेन, गान्धार काशी और अवन्ती आदि । इनका विनाश जनपदविनाश कहलाता है । उसे भी वह जानता है। यहांपर भी तीन प्रकारकी प्ररूपणा करनी चाहिए । नदी और पर्वतसे अवरुद्ध नगरकी खेट संज्ञा है, इसका विनाश खेटविनाश कहलाता है । इससे आगे के सब विनाशोंकी तीन प्रकारकी प्ररूपणा करनी चाहिए । पर्वतों से रुके हुए नगरका नाम कर्वट है, तथा उसका विनाश कर्वटविनाश कहलाता है । पांच सौ ग्रामोंसे घिरे हुए नगरका नाम मडंब है, तथा उसका विनष्ट होना मडंबविनाश कहलाता है । नौका द्वारा और पैरोंसे चलकर जहां जाते हैं उस नगरकी पत्तन संज्ञा है, तथा उसका विनष्ट होना पत्तनविनाश कहलाता है । जो समुद्र और नदीके समीप में स्थित है और जहां नौकाय आती जाती हैं उसकी द्रोणमुख संज्ञा है, तथा उसका विनष्ट होना द्रोणमुखविनाश कहलाता है ।
पट्टणणामं विणिद्दिट्ठ || दोणामुहाभिधाणं सरिवइवेलाए वेढियं जाण । संबाहणं ति बहुविहरण्णमहासेलसहरत्यं 11 ति प ४, १३९८ - १४००. काप्रतौ ' गावा' इति पाठ: 1
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