Book Title: Shatkhandagama Pustak 13
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 361
________________ ३२४ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ( ५, ५, ५९. मेत्ताणि' लोगमेतं णाम एगो धणलोगो, दोहि घणलोगेहि दोणि लोगमेत्ताणि एवं गंतूण असंखेज्जलोगमेत्ताणि घेत्तण उवकस्सं परमोहिक्खेत्तं होदि । एदेण परमोहि णिबद्धखेत्तपरूवणा कदा। 'समयकालो' दुसमओ च सो कालो च समयकालो। किम ठे समएण कालो विसेसिदो ? आवलि-खण-लव-महत्तादिपडिसेहटें। दु-सद्दो वुत्तसमुच्चयट्ठो। तेण समयकालो वि असंखेज्जाणि लोगमेत्ताणि होति ति सिद्धं । एदेण परमोहीए उक्कस्सकालो परविदो। अगणिकाइयओगाहणदाणाणि खेत्तं णाम । तेन क्षेत्रेण उपमीयन्त इति क्षेत्रोपमा; क्षेत्रोपमाश्च ते अग्निजीवाश्च क्षेत्रोपमाग्निजीवाः । तेहि सलागभदेहि परिच्छिण्णं दव्वं रूवगदं अर्णतपरमाणुसमारद्धं परमोही लहदि जाणदि ति घेत्तव्वं । एदेण परमोहीए उक्कस्सदत्वपरूवणा कदा। संपहि देसोहिउक्कस्सदव्वं मणदब्यवग्गणाए अणंतिमभागस्स समखंडं काढूण दिण्ण एक्केक्कस्स रूवस्स परमोहिजहण्णदव्वं पावदि । एगघणलोगमावलियाए असंखेज्जदिभागेण गणिदे परमोहीए जहण्णखेत्तं होदि । तेणेव गुणगारेण समऊणपल्ले गुणिदे तस्सेव जहण्णकालो होदि। सलागादो एगरूवमवणेयव्वं । को एत्थ सलागरापी? तेउक्काइयहै। दो घनलोकोंसे दो लोकमात्र होते हैं। इस प्रकार आगे जाकर असंख्यात लोकमात्रोंको ग्रहणकर परमावधिज्ञानका उत्कृष्ट क्षेत्र होता है । इसके द्वारा परमावधिज्ञानसे सम्बन्ध रखनेवाले क्षेत्रका कथन किया गया है । ' समयकालो' यहां 'समय रूप जो काल समयकाल' इस प्रकार कर्मधारयसमास है। शंका - समय द्वारा काल किसलिए विशेषित किया गया है ? समाधान - आवलि, क्षण, लव और मुहूर्त आदिका प्रतिषेध करनेके लिए कालको समयसे विशेषित किया गया है। 'दु' शब्द उक्त अर्थका समुच्चय करनेके लिए आया है। इससे समय काल भी असंख्यात लोक प्रमाण है, यह सिद्ध होता है । इसके द्वारा परमावधिज्ञानके उत्कृष्ट कालका कथन किया हैं। अग्निकायिक जीवोंके अवगाहनस्थानोंका नाम क्षेत्र है। उस क्षेत्रके द्वारा जो उपमित किए जाते हैं वे क्षेत्रोपम कहलाते हैं । क्षेत्रोपम ऐसे जो अग्निजीव वे क्षेत्रोपम अग्निजीव हैं। शलाकारूप उन अग्निकायिक जीवोंके द्वारा परिच्छिन्न किये गये ऐसे अनन्त परमाणुओंसे आरब्ध रूपगत द्रव्यको परमावधिज्ञान उपलब्ध करता है अर्थात् जानता हैं, ऐसा ग्रहण करना चाहिए। इसके द्वारा परमावधिज्ञानके उत्कृष्ट द्रव्यका कथन किया गया है। ___ अब देशावधिज्ञानके उत्कृष्ट द्रव्यको मनोद्रव्य वर्गणाके अनन्तवें भागका विरलनकर उसके ऊपर समान खंड करके देनेपर एक एक विरलन अंकके प्रति परमावधिज्ञानका जघन्य द्रव्य प्राप्त ता है । एक घनलोकको आवलिके असंख्यातवें भागसे गुणित करनेपर परमावधिज्ञानका जघन्य क्षेत्र होता है । तथा उसी गुणकारसे एक कम पल्यको गुणित करनेपर उसीका जघन्य काल होता है। यहां शलाकामेंसे एक अंक कम कर देना चा हए। . आप्रती 'लोगमेत्ताणि ' इति पाठ: 18 अप्रतौ ' -लोगेहि भागे हिदे दोणि · इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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