Book Title: Shatkhandagama Pustak 13
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 363
________________ ३२६ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ( ५, ५, ५९. मेत्तो होदि । खेत्तमुक्कस्सं पुण असंखेज्जदीव-समद्दमेत्तं होदि । उक्कस्सकालो असंखेज्जाणि वस्साणि । कधमेदं णव्वदे ? ' तेयाकम्मसरीरं' एवम्हादो सुत्तादो णव्वदे। रइएसु जहण्णोहिक्खेत्तं गाउअमेत्तं होदि, उक्कस्सं पुण एगजोयणपमाणं । एवं सुत्तं देसामासियं, णिरएस सामण्णण जहण्णुक्कस्सोहि*परूवणादो। तेणेदेण सूइदत्यस्स परूवणं कस्सामो। तं जहा- सत्तमाए पुढवीए रइयाणमक्कस्तोहिखेत्तं गाउअपमाणं होदि । तेसिमुक्कस्सकालो अंतोमहत्तं । छट्ठीए पुढवीए गैरइयाणमुक्कस्सोहिखेत्तं दिवड्डगाउअपमाणं । तेसि कालो वि अंतोमहत्तं । पंचमीए पुढवीए रइयाणं उक्कस्सोहिखेत्तं बेगाउअपमाणं। उक्कस्सकालो अंतोमुहुत्तं । चउत्थीए पुढवीए रइयाणमुक्कस्सोहिखेत्तमड्डाइज्जगाउअपमाणं होदि । तत्थुक्कस्सकालो/ अंतोमुहुत्तं । तदियाए पुढवीए रइयाणं उक्कस्सोहिखेत्तं तिणिगाउअपमाणं । तत्थ उक्कस्सकालो अंतोमहत्तं । बिदियाए पुढवीए रइयाणमुक्कस्सोहिखेत्तं अदुट्ठगाउअमपाणं । तत्थुक्रुस्सकालो अंतोमहत्तं । पढमाए पुढवीए रइयाणमुक्कस्सोहिखेत्तं चत्तारिगाउअपमाणं । तत्थुक्कस्सकालो मुहत्तं समऊणं। सुत्ते अवृत्तकालो कुदो संचयभूत प्रदेशों प्रमाण होता है। उसका उत्कृष्ट क्षेत्र असंख्यात दीप-समुद्र प्रमाण और उत्कृष्ट काल असंख्यात वर्ष होता है । शंका-- यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान-- वह · तेया-कम्मसरीरं' ( गाथासूत्र ९ ) से जाना जाता है । नारकियोंमें जघन्य अवधिज्ञानका क्षेत्र गव्यति प्रमाण है और उत्कृष्ट क्षेत्र एक योजन प्रमाण है । यह सूत्र देशामर्शक है, क्योंकि, नारकियोंमें सामान्यरूपसे जघन्य और उत्कृष्ट अवधिज्ञानके क्षेत्रका कथन करता है । इसलिए इसके द्वारा सूचित होनेवाले अर्थका निरूपण करते हैं । यथा- सातवी पृथ्वीमें नारकियोंके अवधिज्ञानका उत्कृष्ट क्षेत्र गव्यूति प्रमाण और वहां उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहुर्त है। छठी पृथ्वीमें नारकियोंके उत्कृष्ट अवधिज्ञानका क्षेत्र डेढ गव्यूति प्रमाण है और उन्हीं के उसका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहुर्त है । पांचवीं पृथ्वी में नारकियोंके उत्कृष्ट अवधिज्ञानका क्षेत्र दो गव्यति प्रमाण और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहर्त है । चौथी पृथ्वीमें नारकियोंके उत्कृष्ट अवधिज्ञानका क्षेत्र अढाई गव्यूति प्रमाण और वहां उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। तीसरी पृथ्वीमें नारकियोंके उत्कृष्ट अवधिज्ञानका क्षेत्र तीन गव्यूति प्रमाण है और वहां उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहुर्त है। दूसरी पृथ्वीमें नारकियोंके उत्कृष्ट अवधिज्ञानका क्षेत्र साढे तीन गव्यूति प्रमाण और वहां उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहुर्त है। पहिली पृथ्वीमें नारकियोंके उत्कृष्ट अवधिज्ञानका क्षेत्र चार गव्यूति प्रमाण और वहां उत्कृष्ट काल एक समय कम मुहूर्त प्रमाण है। __शंका-- सूत्रमें काल नहीं कहा गया है, वह किस प्रमागसे जाना जाता है ? * काप्रतौ ' जहण्णुक्कस्सेहि-', ताप्रती 'जहण्णुक्कस्से (स्सो) हि-' इति पाठः। आ-का-ताप्रतिष 'तमुक्कस्सकालो ' इति पाठः । ताप्रती 'गाउपमाणं ' इति पाठः। ४ रयणप्पहाए जोयणमेय ओहिविसओ मुणेयव्वो। पुढवीदो पुढवीदो गाऊ अद्धद्धपरिहाणी । मूला. १२-१११. रयणप्पहावणीए कोसा चत्तारि ओहिणाणखिदी। तप्परदो पत्तेक्कं परिहाणी गाउदद्धेण । ति. प. २-२७१. चत्तारि गाउयाई अदधुढाई तिगाउयं चेव । अड्ढाइज्जा दोण्णि य दिवड्डमेगं च नरएसु । वि. भा. ६९६. ( नि. ४७ ). प्रज्ञापना ३३-२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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