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छक्खंडागमे वग्गणा-खंडं
एवं सुत्तं कप्पवासियदेवाणं चेव, सेसाणं ण होदि ति कधं णबदे? तिरिक्खमणस्सेसु अंगुलस्स असंखेज्जविभागमेत्तजहण्णोहिक्खेत्तपमाणपरूवणादो ण च कम्मइयसरीरं जाणताणं अंगुलस्स असंखेज्जदिभागमेत्त जहण्णोहिक्खेत्तं होदि, असंखेज्जा दीव समुद्दा त्ति सुत्तेण सह विरोहादो। पुणो तिरिक्ख-मणुस्सेसु ओरालियसरीरं विस्सासोवचयसहिदं एगघणलोगेण खंडिदे जमेगखंडं तं जहण्णोहिदव्वं होदि। पुणो मणदत्ववग्गणाए अणंतिमभागमवट्टिदं विरलेदूण जहण्णोहिदव्वं समखंडं काढूण दिण्णे बिदिय
ओहिणाणस्स दव्वं होदि । एवं "कालो चउण्ण वड्ढी " एदस्स सुत्तस्स अत्थमवहारिय तिरिक्ख-मणुस्सेसु दव्व खेत्त-काल भावपरूवणा कायव्वा जाव देसोहीए सवषकस्सदव्व-खेत्त-काल-भावा जादा ति। सुत्तण विणा कधमेदं वच्चदे ? अविरूद्धाइरियवयणादो। संपहि परमोहिविसयदव्व-खेत्त-काल-भावपरूवणमुत्तरगाहासुत्तं भणदि
परमोहि असंखेज्जाणि लोगमेत्ताणि समयकालो दु ।
शंका - यह सूत्र कल्लवासी देवोंकी ही अपेक्षासे हैं, शेष जीवोंकी अपेक्षासे नहीं है; यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
___समाधान - वह तिर्यंच और मनुष्योमें अंगुलके असंख्वातवें भागप्रमाण जघन्य अवधिज्ञानके क्षेत्रका कथन करनेवाले सूत्र (गाथासूत्र ३) से जाना जाता है । और कार्मण शरीरको जानेवाले जीवोंके अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण जघन्य अवधिज्ञानका क्षेत्र होता है, यह कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि, इस कथनका ' असंखेज्जा दीव-समुद्दा' इस सूत्र (गाथासूत्र ९, के साथ विरोध आता हैं।
पुनः तिर्यंच और मनुष्योंमें विस्रसोपचयसहित औदारिक शरीरको एक घनलोकसे भाजित करनेपर जो एक भाग लब्ध आता है वह जघन्य अवधिज्ञानका द्रव्य होता है । पुनः मनोद्रव्यवर्गणाके अनन्तवें भागरूप अवस्थित विरलनराशिका विरलन करके उसपर जघन्य अवधिज्ञानके द्रव्यको समान खण्ड करके देयरूपसे देनेपर जो एक विरलनके प्रति द्रव्य प्राप्त होता है वह दूसरे अवधिज्ञानका द्रव्य होता है । इस प्रकार 'कालो चउण्ण वुड्ढी' इस सूत्रके अर्थका अवधारण करके तिर्यंच और मनष्योंमें द्रव्य क्षत्र, काल और भावकी प्ररूपणा करनी चाहिए। और वह प्ररूपणा देशावधिज्ञानके सर्वोत्कृष्ट द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावके प्राप्त होने तक करनी चाहिए।
शंका - यह सूत्रके विना कैसे कहा जाता है ? समाधान - यह सूत्राविरूद्ध आचार्योंके वचनसे कहा जाता है। अब परमावधिज्ञानके विषयभूत द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावका कथन करनेके लिए आगेका गाथासूत्र कहते हैंपरमावधिज्ञानका असंख्यात लोक प्रमाण क्षेत्र है और असंख्यात शलाकाक्रमसे
*प्रतिषु ' एवं ' इति पाठ: 1
ताप्रती 'विदियं ' इति पाठः 1
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